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२१६ वरिसधरस्स उ ईसाणगस्स चरिमम्मि समयम्मि ॥ ईसाणे पूरित्ता, नपुंसर्ग तो असंखवासीसु । पल्लासखियभागेग, पुरए इत्थीवेयस्त ॥१५८|| जो सबसंकमेणं,, इस्थिपुरिसम्मि बुहइ सो सामी। पुरिसस्स कम्मसंजलणयाण सो चेव संछोभे ॥१५९॥ चउरुवसामिय मोहं, जसुच्चसायोण सुहुमखवगंते । जं असुभपगइदलियरस संकमो होइ एयासु ॥१६॥ अद्धाजोगुक्कोसेहिं देवनिरयाउगाण परमाए। परमं पएस संतं, जा पढमो उदयसमओ सो॥१६॥ सेसाउगाणि नियगेसु, चेव योगंतु पुवकोडीए। सायबहुलस्स अचिरा, बंधते जाव नो वट्टे ॥१६२॥ पूरित्त पुवकोडी-पुहुत्तनारयदुगस्स बंधते । एवं पलियतिगंते, सुरदुगवेउवियदुगाणं ॥१६३॥ तमतमगो अइखिप्पं, सम्मत्तं लभिय तंमि बहुगद्धं । मणुयदुगस्सुक्कोसं, सवज्जरिसभस्स बंधते ॥१६४॥ बेछावहिचियाण, मोहस्सुवसामगस्स चउखुत्तो। सम्मधुवंबारसण्हं, खवगंमि सबंधअंतम्मि ॥१६५।
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