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११२ अरइरईणं उदओ, किन्न भवे पोग्गलाणि संपप्प । अप्पुढेहि वि किन्नो, एवं कोहाइयाणंपि ॥४६।। आउध्व भवविवागा, गई न आउस्स परभवे जमा । नो सव्वहा वि उदओ, गईण पुण संकमणत्थि ॥४७॥ अणुपुत्वीणं उदओ, किं संकमणेण नत्थि संते वि। जह खेत्त हेउयो ताण न तह अन्नाण सविवागो।४८॥ संपप्प जीयकाले, उदयं काओ न जंति पगईओ। एवमिणमोहहेडं, आसज्ज विसेसयं नस्थि ॥ ४९ ॥ केवलदुगस्स सुहमो हासाइसु कह न कुणइ अपुव्वो सुभगाईणं मिच्छो, किलिङ्कयो एगठाणिरसं ॥५०॥ जलरेहसमकसाए वि, एगठाणी न केवलदुगस्स । जं अणुयंपि हु भणियं आवरणं सव्वघाई से ॥ ५१॥ सेसासुभाण वि न ज, खवगियराणं न तारिसा सुद्धी। न सुभाणंपि हु जम्हा, ताणं बंधो विसुतंति ॥५२॥ उकोसठिई अनवसाणेहिं एगठाणियो होही । सुभियाण तन्न जे ठिइअसंखगुणियाउ अणुभागा ॥५३ दुविहमिह संतकम्मं, धुवाधुवं सूइयं च सहेण ।
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