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अब्भविएसु पढम, सव्वाणियरेसु दो असन्नीसु । सन्नीसु बार केवलि नो सन्ना नो असण्णीवि ॥३२ अपमत्तुवसन्त अजोगि, जाव सव्वेवि अविरयाईया। वेयगउवसमखाइयदिट्ठी कमसो मुणेयव्वा ॥ ३३ ॥ थाहारगेसु तेरस, पंच अणाहारगेसु वि भवंति। भणिया जोगुवयोगाण, मग्गणा बंधगे भणिमो ॥३४
॥इति योगोपयोगमार्गणाख्यं प्रथम द्वारम् ॥
॥ अथ द्वितीयं बंधकद्वारम् ॥
घउदसविहा वि जीवा, विबंधगा तेसिमंतिमो भेश्रो चोदसहा सव्वेवि हु, किमाइसंताइपयनेया ॥ १ ॥ किं जीवा उवसममाइएहिं संजु दध्वं । कस्स सरूवस्स पहू, केणन्ति न केणइ कयाउ ॥ २ ॥ कत्थ सरीरे लोए व, हुंति केवचिर सबकालंतु । कइ भावजुया जीवा दुगतिगच उपंचमीसेहिं ॥ ३ ॥
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