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( १६१ ) जसकित्तिमुच्चगोयं वाजोगी केइ तित्थयरं ॥३॥ ठिइउदओ वि ठिइक्खयपओगसाठिइउदीरणा अहिगो उदयठिईए हस्सो बत्तीसा एग उदयठिई ॥ ४ ॥ अणुभागुदओ वि जहन्न नवरि आवरण विग्घवेयाणं । संजलणलोभसम्मत्ताण य गंतूणमावलिगं ॥ ५ ॥ अजहन्नाणुकोसा चउ तिहा छण्ह चउव्विहा मोहे | आउस्स साइ अधुवा सेसविगप्पा य सव्वेसिं ॥६॥ अजहन्न। एक्कोसो सगयालाए चउत्तिहा चउहा । मिच्छत्ते से सासिं दुविहा सव्वे य सेसाणं ॥ ७॥ सम्मत्तप्पा सावय विरए संजोयणाविणासे य । दंसणमोहक्खवगे कसाय उवसामगुवसंते ॥८॥ खवगे य खीणमोहे जिणे य दुविहे असंखगुणसेढी । उदओ तव्विवरीओ कालो संखेज्जगुणसेढी ॥ ९ ॥ तिनि वि पढमिल्लाओ मिच्छत्तगए वि होज्ज अन्नभवे पगयं तु गुणियकम्मे गुणसेढीसीसगाणुदये ||१०|| आवरण विग्घमोहाण जिणोदइयाण वावि नियगंते । लहुखवणाए ओहीणणोहिलद्धिस्स उक्कस्सो ॥११॥
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