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सहइ असम्भावं नवइधं वा अणुवइटुं ॥ २५॥ सम्मामिच्छदिट्ठी सागारे वा तहा अणागारे । अह वंजणोग्गहम्मिय सागारे होइ नायवो ॥ २६ ॥ वेयगसम्मद्दिकी चरित्तमोहुवसमाए चितो ।
जओ देसजई वा विरतो व विसोहिअद्धाए ॥ २७ ॥ अन्नाणाणब्भुवगमजयणाहजओ वज्जविरईए । एगवयाइ चरिमो अणुमइमित्त त्ति देसजई ||२८|| अणुमइविरथो य जई दोपह वि करणाषि दोहि न उ तईयं । पच्छा गुणसेढी सिं तावइया आलिगा उपिं ॥ २९ ॥ परिणामपञ्चया उ णाभोगगया गया ाकरणा उ । गुणसेढी सिं निच्चं परिणामा हाणिवुढिजुया ॥३०॥ चउगइया पज्जत्ता तिन्नि वि संयोयणा विजोयंति । करणेहिं तीहिं सहिया नंतरकरणं उवसमो वा ॥ ३१ ॥ दंसणमोहे वि तहा कयकरणद्धाइ पच्छिमे होइ । जिणकालगो मस्सो पठवगो अट्ठवासुपिं ॥ ३२ ॥ अहवा दंसणमोहं पुण्वं उवसामइत्तु सामन्ने ।
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