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(८) दुविहंपि चरणमोहं कसायहासाइविसयविवसमणो । बंधइ नरयाऊ महारंभपरिग्गहरओ रुद्दो ॥ ५६ ॥ तिरिआउ गूढहियओ, सढो ससल्लो तहा मणुस्साउ पयईइ तणुकसाओ, दाणरुई मइिझमगुणो थ ॥५७ अविरयमाइ सुराउ, बालतवोकामनिजरो जयइ ।। सरलो अगारविल्लो, सुहनामं अन्नहा असुहं ॥५॥ गुणपेही मयरहिओ, अझ्झयणइझावणारुई निञ्च ।। पकुणइ जिणाइभत्तो, उच्चं नी इअरहा उ ॥५९॥ जिणपूआविग्धकरो, हिंसाइपरायणो जयइ विग्छ । इय कम्मविवागोअ, लिहिओ देविंदसूरीहिं ॥६०॥
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॥ इति कर्मविपाकनामा प्रथमः कर्मग्रंथः॥
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