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एत्तो हणइ कसायट्ठगंपि पच्छा नपुंसगं इत्थी। तो नोकसायछक्कं, बुहइ संजलणकोहम्मि ॥८३॥) पुरिसं कोहे कोहं, माणे माणं च बुहइ मायाए। मायं च बुहइ लोहे, लोहं सुहुमं पि तो हणइ ॥४॥ (खीणकसायदुचरिमे,निदा पयला च हणइ छउमत्थो। आवरणमंतराए, छउमत्थो चरमसमयम्मि ||८५।।) देवगइसहगयाओ, दुचरमसमयभविश्रमि खीति । सविवागेअरनामा, नीयागोयं पि तत्थेव ॥८६॥ अन्नयरवेअणिज्जं, मणुयाउअ उच्चगोय नवनामा । वेएइ अजोगिजिणो, उक्कोसो जहन्न इकारं ॥८७॥ मणुअगइ जाइ तस बायरं च पजत्तसुभगमाइज्जं । जसकित्ती तित्थयरं, नामस्स हवंति नव एआ ॥८॥ तच्चाणुपुत्विसहिआ, तेरस भवसिद्धिअस्स चरमंमि। संतसगमुक्कोसं, जहन्नयं बारस हवंति ॥८९॥ मणुअगइसहगयाओ, भवखित्तविवागजिवविवागित्ति॥ वेअणियअन्नयरुच्च, चरमभवियस्स खीयंति ॥९॥ अह सुइयसयलजगसिहरमरुवनिरुवमसहावसिद्धिसुहं
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