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________________ आशीर्वचन सकत हा छेदसूत्रों की श्रृंखला में एक सूत्र है-कल्प। विषयवस्तु और आकार के कारण उसका नाम हो गया-बहदकल्प। मूल प्राकृत, भाष्य प्राकृत भाषा में और टीका संस्कृत में। अपेक्ष थी-इसका हिन्दी में अनुवाद हो। इसकी पूर्ति मुनि दुलहराजजी ने की। अपेक्षा अंग्रेजी अनुवाद की भी है। उसकी पूर्ति पर भी विचार किया जाएगा। स्वास्थ्य की अनुकूलता की स्थिति में मुनि दुलहराजजी इस कार्य का दायित्व निभा सकते हैं। 'बृहद्कल्पभाष्य' एक विशाल ग्रंथ है। यह ६४९० गाथाओं में निबद्ध है। विषयवस्तु की दष्टि से आकर ग्रंथ है। इस आकर ग्रंथ के प्रथम और चरम बिन्दुओं को मिलाकर एक रेखा का निर्माण करना एक श्रमसाध्य कार्य है। मुनि दुलहराजजी श्रमिकवृत्ति के मुनि हैं। वे मुनि बनकर मेरे पास आए। तब से लेकर अब तक सतत उनकी श्रमनिष्ठा को अखंडरूप में देख रहा हूं। यह सौभाग्य की बात है कि उन्होंने श्रम की साधना में कभी थकान का अनुभव नहीं किया। आचार्य तुलसी ने आगमसंपादन के भगीरथ कार्य को हाथ में लिया और उसके संचालन का दायित्व मुझे दिया। उस दायित्व की अनुभूति में मुनि दुलहराजजी अनन्य सहयोगी बने रहे। आगम-संपादन के कार्य में वे पहले दिन से संलग्न रहे और आज भी इस कार्य में संलग्न हैं। उनकी श्रमनिष्ठा और संलग्नता ने ही उन्हें आगम-मनीषी के अलंकरण से अलंकृत किया है। इस संपादन कार्य से पूर्व वे व्यवहारभाष्य का अनुवाद और संपादन भी कर चुके हैं। वह भाष्य भी साढ़े चार हजार से अधिक गाथाओं का विशाल ग्रंथ है। यदि मन की विशालता हो तो सागर की विशालता को भी मापा जा सकता है। मेरी दृष्टि में ये भाष्यग्रंथ सागर की उपमा से उपमित किए जा सकते हैं। इनको नापने का प्रयत्न निष्ठा, साहस और दत्तचित्तता का कार्य है। मुनि दुलहराजजी इस कसौटी में सफल हए हैं। उनका वर्तमान आगम का वर्तमान है। उनका भविष्य भी आगम का भविष्य बना रहे। आचार्य महाप्रज्ञ धनतेरस, वि. सं. २०६४ उदयपुर (राज.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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