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________________ कथा परिशिष्ट ६०. शुनिका दृष्टान्त शिकारी एक कुतिया रखता था। तितर को पकड़ने के लिए कुतिया को बुलाता फिर उसे दुत्कार देता। ऐसा बार-बार करने पर वह कुतिया थक गई। फिर शिकार सामने होने पर शिकारी ने कुतिया को बुलाया लेकिन वह एक कदम भी नहीं चली। ६१. स्थापित कुल एक नगर में चार साधु आए। वहां पहले से स्थित साधुओं ने उनसे आहार के लिए पूछा। पहला साधु बोला- मुझे उदरपूर्ति करनी है। गर्म-ठंडा कैसा भी हो? पर बासी न हो। दूसरा बोला-स्नेह रहित आहार भले हो पर कोमल हो । तीसरा बोला- मेरे लिए मधुर आहार हो । चौथा बोला- अन्न-पान पक्व हो पर गंध रहित हो । गा. १५८५ वृ. पृ. ४६४ साधु उक्त आहार के लिए श्रेष्ठ कुलों में जाता है स्थापित कुलों में आहार प्राप्त हो जाता है यदि स्थापित कुल न हों तो आहार प्राप्त नहीं होता । आगन्तुक साधुओं के लिए आहार आदि लाना महानिर्जरा होती है। गा. १५९० वृ. पृ. ४६६ ६२. विशुष्क गाय एक ब्राह्मण के पास दुधारू गाय थी। वह दोनों समय प्रचुर दूध देती थी । ब्राह्मण ने सोचा- दस दिनों बाद मेरी पुत्री का विवाह है। उस समय अधिक दूध की आवश्यकता होगी। अतः आज से मैं गाय को दुहना बन्द कर दूं । जिससे कि दस दिनों बाद मुझे इससे प्रचुर दूध प्राप्त हो सकेगा । उसने गाय को दुहना बंद कर दिया। विवाह के दिन वह गाय को दुहने बैठा। एक बूंद दूध भी नहीं मिला। सारा दूध सूख गया था। इसी प्रकार स्थापनाकुलों में न जाने पर, वहां के व्यक्ति भूल जाते हैं कि अभी यहां साधु हैं या नहीं ? मुनि कुछ दिनों के अंतराल से वहां जाते हैं तो प्रायोग्य द्रव्य प्राप्त नहीं होता। अतः दो-तीन दिनों के अंतराल से वहां अवश्य जाना चाहिए। Jain Education International ६३. आराम दृष्टान्त एक बागवान् था। वह अपने बगीचे से पुष्पों को लेकर शहर में जाता और उनको बेच आता। उसने सोचा-पन्द्रह दिनों के पश्चात् इन्द्रमहोत्सव है । उस दिन पुष्पों की बहुत बिक्री होगी, अतः उस दिन मैं बहुत सारे पुष्प लेकर शहर में जाऊंगा और एक साथ उन्हें बेचूंगा । उसने सारे पुष्प तोड़ने बंद कर दिए। इन्द्रमहोत्सव के दिन उसे एक भी पुष्प नहीं मिला। सब सूख गए थे। इसी प्रकार स्थापनाकुलों में न जाने पर, गृहस्थ भी उनकी प्रतीक्षा करना भूल जाते हैं। आवश्यकता पड़ने पर साधु जाते है तो उन्हें वहां वह नहीं मिलता जो उनको चाहिए था। For Private & Personal Use Only गा. १५९९ वृ. पृ. ४६६ गा. १५९१ वृ. पृ. ४६६ ७०५ www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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