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________________ ४८ बृहत्कल्पभाष्यम् गाथा संख्या विषय गाथा संख्या विषय १०४५ श्रमणियों के महाव्रतों के विषय में शिष्य की १०८०,१०८१ पूर्वाचार्यों द्वारा गृहीत धान्य, फल आदि का पृच्छा । ग्रहण कल्पनीय। १०४६ जैन परंपरा में श्रमण-श्रमणियों के महाव्रत का १०८२ अशस्त्रोपहत पृथुक अनाचीर्ण। तुल्य निर्देश। १०८३ मिश्रोपस्कृत, निर्मिश्रोपस्कृत के ग्रहण की विधि । १०४७ दोनों वर्गों में मैथुन की भावना का उद्भव करने १०८४ आधाकर्म संबंधी दो आदेश। वाली वस्तु का प्रतिषेध। १०८५ दोनों वर्गों के लिए प्रलंब ग्रहण विधि समान। १०४८ दोनों वर्गों में प्रतिषिद्ध वस्तुओं का भिन्न-भिन्न मासकप्प पदं निर्देश। सूत्र ६ १०४९ निदान (कारण) का परिहार आवश्यक। १०८६,१०८७ प्रस्तुत सूत्र में वसति विधि का वर्णन। १०५० स्त्री और पुरुष के मोहोद्भव में रस, गंध की १०८८ सूत्रगत 'से' 'वा' का अर्थ। तुल्यता तथा शब्द, रूप और स्पर्श में भजना। १०८९ नगर, खेट, कर्बट और मडंब की व्याख्या । १०५१ कौतूहली रानी का दृष्टान्त। १०९० पत्तन के प्रकार तथा द्रोणमुख की व्याख्या। १०५२ अभिन्न तथा अविधि भिन्न प्रलंब ग्रहण करने पर १०९१ निगम, राजधानी, आश्रम तथा निवेश की श्रमणियों को प्राप्त प्रायश्चित्त। व्याख्या। १०५३,१०५४ पादकर्म व हस्तकर्म करने से उत्पन्न होने वाले १०९२ संबोध, घोष, अंशिका आदि की व्याख्या। दोष। १०९३ पुटभेदन की व्याख्या। १०५५ अविधिभिन्न तथा विधिभिन्न की प्ररूपणा। १०९४ ग्राम शब्द के नौ निक्षेप। १०५६ अविधिभिन्न और अभिन्न प्रलंब के दोषों में १०९५ कौन सा नय किस ग्राम को द्रव्य ग्राम कहता समानता। है ? इसका समाधान तथा शब्द नय के तीन १०५७ विधिभिन्न प्रलंब का ग्रहण भी केवल कारणिक। विकल्प। १०५८ तीन कारणों का कथन। १०९६-११०० ग्राम की व्याख्या के विविध नय। १०५९ प्रलंब ग्रहण का कल्प। ११०१ ऋजुसूत्र नय के अनुसार ग्राम शब्द की व्याख्या। १०६० तोसली में भिन्न तथा अभिन्न प्रलंब ग्रहण करने ११०२-११०८ ग्राम संस्थान के बारह प्रकार तथा उनकी का कल्प। व्याख्या। १०६१ देश के दो प्रकार और तोसली में प्रलंब अत्यधिक ११०९-११११ संस्थानों की व्याख्या के अनेक नय। क्यों? १११२ भूतग्राम आतोद्यग्राम के विविध भेद। १०६२ सहिष्णु और भीत परिषद् की चतुर्भगी। मातृग्राम तथा भावग्राम का विवेचन। १०६३ श्रमणियों के परिपालन का निर्देश। १११४ भावग्राम कौन-कौन से? १०६४,१०६५ अवमौदर्य के समय साध्वियों की व्यवस्था कैसे १११५ तीर्थंकर भावग्राम क्यों? की जाए? १११६ क्या सम्यक्दृष्टि परिगृहीत प्रतिमा भी भाव १०६६ विधिभिन्न प्रलंब की अप्राप्ति में स्थविरा साध्वी ग्राम है? द्वारा करणीय कल्प। १११७,१११८ प्रतिमा को भावग्राम मानने पर निह्नवों को १०६७ तरुण श्रमणियों को भिन्न प्रलंब ही क्यों ? भावग्राम माने? शिष्य द्वारा प्रश्न। आचार्य द्वारा १०६८-१०७४ त्रिविध गण (संयत, संयती तथा तदुभय) द्वारा समाधान। परिगृहीत क्षेत्र में यतना का विवेक और विवेचन। प्रस्तुत सूत्र में ग्राम का कौन सा अधिकार? १०७५ स्वग्राम तथा परग्राम में ग्रहण करने की विधि। ११२० ग्राम पद की प्ररूपणा करने पर अनुपूर्वी से नगर १०७६ प्रमाण प्राप्त आहार का परिमाण। आदि की प्ररूपणा करनी आवश्यक। १०७७-१०७९ शुद्ध ओदन आदि अप्राप्ति में प्रलंब ग्रहण की ११२१ परिक्षेप पद के छह निक्षेप। विधि। ११२२ द्रव्य परिक्षेप के तीन प्रकार व उनकी व्याख्या। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002532
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages450
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size14 MB
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