________________
भूमिका
अनुवादक के प्रति
तेरापंथ धर्मसंघ में आचार्य तुलसी ने आगम - सम्पादन का स्वप्न देखा । आगम- सम्पादन का गुरुतर कार्य प्रारंभ हुआ। इसके वाचनाप्रमुख स्वयं आचार्य तुलसी रहे। सम्पादक और विवेचक की भूमिका में आचार्य महाप्रज्ञ का कर्तृत्व मुखर हुआ। बत्तीस आगमों के साथ उनके व्याख्या - साहित्य के सम्पादन और अनुवाद का काम भी करणीय था । आगम मनीषी मुनिश्री दुलहराजजी प्रारंभ से ही आगमों के सम्पादन, हिन्दी अनुवाद, टिप्पण लेखन आदि कार्यों में संलग्न रहे हैं। गहरी संकल्पनिष्ठा, श्रमनिष्ठा और गंभीर अध्यवसायशीलता से उन्होंने आगम सम्पादन के क्षेत्र में नएनए क्षितिज उद्घाटित करने में सफलता प्राप्त की सफलता की उसी श्रृंखला की एक कड़ी है-बृहत्कल्पमाष्य का हिन्दी अनुवाद |
५ फरवरी २००४, चौपड़ा गांव (महाराष्ट्र) में आचार्य महाप्रज्ञ के वरद करकमलों से जिस कार्य की सिद्धश्री लिखी गई, ८ दिसम्बर २००६, उदासर (राजस्थान) में उस पर पूर्णविराम लगा दिया गया । २ वर्ष, दस महीने और आठ दिन की छोटी-सी अवधि और समुद्र-मंथन जैसा गुरुतर कार्य । क्रियासिद्धि सत्त्वे भवति महता नोपकरणे- इस नीतिवाक्य के अनुसार अनुवादक ने समय के उपकरण को धता बताते हुए सफलता के शिखर पर आरोहण कर लिया। मुनिश्री दुलहराजजी ने ऐसा दुष्कर कार्य करके जैन वाङ्मय की अपूर्व सेवा तो की ही है, आगम रसिक पाठकों पर भी बहुत बड़ा उपकार किया है। उनकी यह सारस्वत साधना आगम साहित्य की अखूट सम्पदा को जन-जन के लिए उपयोगी बनाती रहे, यही अभीप्सा है।
धनतेरस, वि. सं. २०६४ उदयपुर (राज.)
Jain Education International
२१
For Private & Personal Use Only
महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा
www.jainelibrary.org