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________________ ५० पउमचरिउक०१४,४-९,१५, १-९, १६, १-२ अप्पुणु भरहु जेम णिक्खन्तउ तउ करेवि पुणु णिव्वुइ पत्तउ ॥४ ता एत्तहे विणिहय-पडिवक्खों रज्जु करन्तहों तहों महरक्खहों ॥५ देवरक्खु उप्पण्णउँ णन्दणु णैरवइ एक-दिवसें" गउ उववणु ॥६ कीलण-वाविहे परिमिउँ णारिहिँ हाइ गइन्दु व सहुँ गणियारिहि ॥ ७ । णिवडिय तासु दिहि तहिँ अवसर जहिँ मुउ महुयरु कमलब्भन्तरें ॥८ ॥ घत्ता॥ चिन्तिउ "जिह धुअगाउ रस-लम्पडु अच्छन्तउ । तिह कामाउरु सव्वु कामिणि-वयणासत्तउ' ॥९ [१५] " णिय-मणे जाइ विसायहाँ जाहिँ सवण-सङ्घ संपाइउ ताहि ॥१ सयल वि रिसि तियाल-जोगेसरं 'महकइ गमयं वाइ वाईसर ॥२ सयल वि वन्धु-सत्तु-समभावा तिण-कञ्चण-परिहरण-सहावा ॥ ३ सयल वि जल्ल-मलकिय-देहा धीरत्तणेण महीहर-जेहा॥४ सयल वि णिय-तव-तेएं दिणयर । गम्भीरत्तणेण रयणायर ॥५ 15 सयल वि घोर-वीर-तव-तत्ता सयल वि सयल-सङ्ग-परिचत्ता ॥६ सयल वि कम्म-वन्ध-विद्धंसण सयल वि सयल-जीव-मम्भीसण ॥ ७ सयल वि परमागम-परियाणा काय-किलेसेकेक-पहाणी ॥८ ॥ घत्ता ॥ सयल वि चरम-सरीर" णं परिणणहँ पयर्ट 20 सयल वि उज्जय-चित्ता। सिद्धि-वहुय वरइत्ता ॥९ तो एत्थन्तरें पहु आणन्दिउ सो रिसि सङ्घ तुरन्तें वन्दिउ ॥१ पभणिउँ विण्णवेवि 'सुयसायर भो भो भवम्भोय-दिवायर ॥२ 11 A अप्पणु. 12 एत्तहि, A तेत्तहे. 13 s णंदणु उप्पपणउ, A उपपजइ णंदणु. 14 s A इक्की. 15 A दिवसि. 16 A कील इ, S कीलए. 17 PS परिमिहि. 18 P S गयंदु. 19 5 सहु. 20 P S गणियारिहि. 21 तहि. 22 P अवसरि. 23_P S जहि. 24 A कमलभंतरि. 25 P घियगारउ, धुयगार उ. 26 P वइणा. 15. 1 PS °मणि. 2 P ताहि, ताविहि. 3 PS तियाले. 4 s योगेसर, A जोग्गेसर. 5A गमइ वय. 6 A °परिहण.7s 'तेयं. 8 A सव्व.98 किलेसिक्के क्व. 10 A °षहाणा. 11 P S सरीरा. 12 PS उजय. 13 P परिणणहं, s परियणणहं. 14 P A पयहा. 15 SA °वहू. 165 वरयत्ता. 16. 1 P एत्थंतरि. 2 P तुरतें. 3 A पभणिउं. 4 P वेण्णवेवि, A ताम तेण, ३ महारक्षः. [१५] १ महाशब्दाः (?). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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