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________________ क०१६,१-१०१,१ । विईओ संधि [१६] तेण वि विहसेविणु एम वुत्तु 'तउ होसइ तिहुअर्ण-तिलउ पुत्तु ॥ १ जसु मेरु-महागिरि-ण्हवणवी? णह-मण्डउ महिहर-खम्भ-गीढु ॥२ जसु मङ्गल कलस महा-समुद्द मजणय-कालें वत्तीस इन्द' ॥३ ताँ दिवसहों लग्गेवि अद्ध वरिसु गिवाण पवरिसिय रयण-वरिसु ॥४ लहु णाहि-णरिन्दहाँ तणयं गेहुँ अवइण्णु भडारउ णाण-देहु ॥५ थिउ गब्भन्भिन्तरें जिणवरिन्दु णव-णलिणि-पत्ते णं सलिल-विन्दु ॥६ वसुहार पवरिसिय पुणु वि ताम अण्णु वि अट्ठारह पक्ख जाम ॥ ७ जिण-सूरु समुट्ठिउ तेय-पिण्डु वोहन्तु भव-जण-कमल-सण्डु ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ मोहन्धार-विणासयरु केवल-किरणायरु । उइउ भडारउ रिसह-जिणु सइ भुवण-दिवायरु ॥९ इय एत्थं पउमचरिए "जिण-जम्मुप्पत्ति' इमं धणञ्जयासिय-सयम्भुएव-कए । पढम चिय साहियं पवं ॥ १० ॥ [२. विईओ संधि] जर्ग-गुरु पुण्ण-पवित्तु तइलोकहों मङ्गलगारउँ । सहसा णेवि सुरेहि मेरुहिँ अहिसित्तु भडारउ ॥ १ [१] उप्पण्णऍ तिहुअण-परमेसरें अट्ठोत्तर-सहास-लक्खण-धरें ॥ १ ० भावण-भवणेहिँ सङ्ख पवज्जिय णं णव-पाउसें ण घण गजिय ॥२ विन्तर-भवणेहिँ पडह-सहासई दस-दिसिवह-णिग्गर्य-णिग्योस ॥३ . 16. 1 PS विहसेप्पिणु. 2 PS एव. 3 SA तिहुअण. 4 P न्हवणपीढु. P SA महीहरु. 6 P कलसु. 7 P मजणए, 5 मजणइ. 8 s कालि. 9 णारेंदहु. 10 5 तणइ. 11 A गेहि corrected to गेहु. 12 A अवयगणु. 13 P गब्भभंतरे, s गब्भन्भंतरि. 14 PS A °पत्ति. 15A मोहंधारे. 16 P णं सई, Sणं सइ, A सइ. 17 S इत्थ. 18 s missing. 19 A साहिअं.. __ 1. 15 जय. 2 s मंगलगरउ. 3 P S सुरेहि. 4 P A मेरुहि. 5A भवणिहिं. 6 P पावसे, S पाउस. 7 Pण. 8 P वेंतर.95 भवणेहि. 10 PS °सहासइ. 11 5 दश'. 125 °णिगय . 13 P णिघोसइं, 5 णिग्घोसइ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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