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________________ PAUMACARIU 64 गणहर गवह लक्ख वर-साहुहुँ 5 3 5a. 64 नवतिः ४ गणेशाःx साधूनांx लक्षं। 5 73. 65 (a) पेक्खेंवि माणथम्भु जिणिन्द हाँ, 65 प्रभामण्डलमेवासौ दृष्ट्वा दूरे जिनोद्भवं । मच्छरु माणु वि गलिउ परिन्दों सर्व गर्व परित्यज्य प्रणनाम xx॥ 594. (b) सो वि गम्पि समसरणु पइट्ठउ, VP पेच्छइ तमतिमिरहर जिणस्स भामण्डलं जिणु पणवेप्पिणु पुरउ णिविट्ठउ ॥ 578-9. दिव्वं । मोतूण निययगव्वं xx॥ तत्थेव संनिविट्ठो नच्चासन्ने समोसरणे॥5 796-80. 66 विहि-मिxxवइरह परिहरियई। 57 10b. 66 मुक्तवेरौ। 5 95a. 67 भीम-सुभीमहि। 57 11a. 67 भीम-सुभीमौ। 5149a. 68 (a) पुष्व-भवन्तर-णेहें। 57 116. 68 जन्मान्तरसुतप्रीत्या। 5162a. (b) तुहुँ महु अण्ण-भवन्तर गन्दणु। 5 8 1b. 69 कामुकविमाणु। 58 3a. 69 विमानं कामगं नाम। 51670. 70 लइ रक्खसिय विज सहुँ हारें। 5 8 3b. 70 (a) राक्षसी विद्यां । 5167a. (b) ददावस्मै हारम् । 5 161a. 71 दुप्पइसार। 5 8 4b. 71 अत्यन्तदुष्प्रवेशः।। 5155b. 72 तीस परम-जोयण-वित्थिण्णी, 72 त्रिंशद्योजन-मानाधः सर्वतः xxx लङ्काणयरि तुझु मई दिण्णी ॥ 58 5. लङ्केति नगरी ॥ 5 158. 73 अण्णु-वि एक-वार छ जोयण, 73 षड्योजनीगतंxxx अलङ्कारोदयामिख्यम् ॥ लह पायाललक घणवाहण ॥ 58 6. 5 163a.-164. VP. पायालङ्कारपुर xxx से। दिन्नं छज्जोयणमवगाढं ॥5 132.. 74 विमलकित्ति-विमलामल-मन्तिहिँ परिमिउ। 74 विमलामलकान्त्यायाःxx। वेष्टितोसौ ॥ 588. 5 169a; 170a 75 छकाउरिहें पहट्ट। 5 8 9a. 75 प्रविष्टो नगरी लङ्काम् ॥ 5 177a. 76 वह काले xxx, ___76 वन्दनायान्यदा यातोऽजितं तोयदवाहनः । अजियजिणहाँ गउ वन्दणहत्तिऍ॥ 5 9 1. 5184a. 77 (a) कह होसन्ति भवन्तें कालें। 77 भवद्विधजिनेश्वराःxx भविष्यन्त्यपरे कति । तुम्हें जेहा । 59 36-4. कति वा समतिक्रान्ताः ॥5 186-187c6. (b) कह तित्थयर देव अइकन्ता। 59 4b. 78 मागहभासऍ कहइ भडार। 59 56. 78 भाषाऽर्धमागधी तस्य भाषमाणस्य 5 190a. 79 पई जेहउ छक्खण्ड-पहाणउ, 79 (a) एकस्त्वत्सदृशोऽतीतश्चक्रचिवश्रियः पतिः। भरह-राहिउ एकु जि राणउ॥ भवानेको x जानेष्यन्ति दशापरे॥5221. प. विणु दस होसन्ति गरेसर, (b) वासुदेवा भविष्यन्ति नव साधं प्रतीश्वरैः । णव वलएव णव जि णारायण, बलदेवाश्च तावन्तः॥ 5225. xxxx णव जि दसाणण ॥ 597-9. 80 दस-उत्तरेंण सएण, भरहु जेम णिक्खन्तउ॥ 80 (a) प्राव्रजत् सः। 52390 59 11. (b) दशाधिकं शतं तेन साकं खेचरभोगिनां xxxनिष्क्रान्तं । 5240. 81 सटि सहास हूय वर-पुत्तहुँ। 5 10 4a. 81 पुत्राणां बिभ्रतां शक्तिमुत्तमां जाताः षष्टिसहस्राणां । 5248. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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