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________________ PAUMAMARIU 33 अण्णहाँ अण्णु करइ मिश्चत्तणु, 33 (a) अत्र कश्चित् पराधीनो तं जि हड वहरायही कारणु ॥2 103b.. लोके भृत्यत्वमागतः। 3 2650. (b) इयं तस्य समुत्पन्ना बुद्धिर्वैराग्य कारणम् । 3 2636. 34 चारु देव ज सई उम्मोहिउ । 2 10 4b. 34 (a) साधु नाथावबुद्धं ते । 3 269a. (b) तस्य प्रबुद्धस्य स्वयमेव । 3 272a. 35 सिविया-जाणे सुरवर-सारउ, 35 सुरनाथापितस्कन्धा xxx xxx चडिउ भडारउ ॥ आरुह्य शिबिकां नाथः ॥ 3 278. देवेंहि खन्धु देवि उच्चाइड ॥ 2 11 1-2. 36 'णमह परम-सिद्धाण' भणन्तें। 2 11 4a. 36 नमः सिद्धेभ्य इत्युक्त्वा। 3 282a. ____VP. सिद्धाण नमुक्कार काऊण। 3 136a. 37 चामीयर-पडलोवरै थवियउ । 37 रत्नपटे केशान् प्रतिपद्य सुराधिपः गेण्हेंवि जण-मण-णयणाणन्दें, चिक्षेप xx क्षौरकूपारवारिणि ॥ 3 284. चित्तउ खीर-समुद्दे सुरिन्दें ॥211 56-6. VP. वज्जा उहो xx केसे मणिपडलयम्मि घेत्तूणं xx खीरसमुद्दम्मि पक्खिवइ ॥ 3 137. 38 तेण समाणु सणेहें लइया, 38 सहस्राणि च चत्वारि नृपाणां स्वामिभक्तितः । रायहँ चउ सहास पन्वया ॥ 2 11 7. xxxxx प्रतिपन्नानि नग्नतां ॥ 3286. VP. चउहि सहस्सेहि सम पत्ता जइणं परमदिक्खं। 31366. 39 भद्ध वरिसु थिउ काऊसाएं। 2 11 80. 39 वर्षार्धमात्रं स कायोत्सगण निश्चलः । 3287a. 40 पवणुदुयउ जडाउ,रिसहहाँ रेहन्ति विसालउ, 40 वातोद्भूता जटास्तस्य रेजुराकुलमूर्तयः। -सिहि वलन्तहाँ णाई, धूमाउल-जालामालउ॥ धूमाल्यः इव सद्ध्यानवहिश(स)क्तस्य कर्मणः ॥ 2 119. 3 288. 41 अचलु। 212 1a. 41 निश्चलः। 3287a. 42 दारुण-दुम्वाएं लइया। 2 12 26. 42 दुःखानिलसमाहताः। 3290a. 43 केण-वि महियलें घत्तिउ अप्पर। 2 12 6b. 43 केचिन्निपतिता भूमौ।। 3290a. 44 को-वि फलई तोडेप्पिणुभक्खइ। 2 128a. 44 गताः केचित् फलाशनं ।। 3291a. 45 'जाहुँ' भणेवि। 2 12 8b. 45 (a) उक्तं 'व्रजामः' । 3 302a. (b) व्रजामः । 3301a. 46 दइवी वाणी समुट्ठिय अम्बरे। 2 13 16. 46 विचेहर्गगने वाचो xxx सुधाभुजाम् । 3294b. VP. अम्बरतलम्मि घुटुं। 3 142b. 47 तहिँ अवसर णमि-विणमि पराइय। 47 VP. ताव य संपत्ता णमि-विणमि। 3 143a. 2 13 6b. 48 पुच्छिय धरणिधरेण, विण्णि वि xxxi 48 VP. अह भणइ नागराया भो भो तुम्हेत्थ थिय कजें क्वणेण, उक्खय-करवाल-विहत्था किं निमित्तेणं असिलटिगहियहत्था xx ठिया 2149. 3147. 49 (a) 2 16 2-5a. . 49 (a) 4 8-9. (b) ढोयहुँ । 2 165a. कतवान् । 48b. 34930. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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