SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ INTRODUCTION 129 9. ताव पडुपडहपडिपहअपहपङाणे। णाइँ सुरदुन्दुही दिण्ण गअणङगणे ॥ रसिअ सअसंख गाअन्ति वरमङ्गलं। तिवलि ढढ्ढन्त घुम्मन्तवरमद्दलम् ॥ SC. VIII 4. ताम पडु पडह पडिपहय पहु-पङगणे, णाइँ सुर-दुन्दुही दिण्ण गयणङगणे ।। रसिय सय सङख जायं महा-गोन्दलं, टिविल-टेण्टन्त-घुम्मन्त-वर-मन्दलं ।। PC. 24 2 1-2. वारणहोमज्झ उम्मगिम करेवि॥ सीहकिसोर ठिउ, वणे पइसरेवि ॥ SC. VIII 6. वारन्तहों मज्झु, उम्मग्गिम करें वि । रिसि-सीह-किसोर (व), थिय वणे पइसरवि ॥ PC. 33 8 9. 11. तिहुअणगुरु तं गअ गुरु मेल्लवि झीणकसाअउं । गउ संततविरहं तउ, पुरिम ताणु संपाइअउ | SC. VIII 17. तिहुअण-गुरु, तं गयउरु, मेल्लेवि खीण-कसाइउ ॥ गय-सन्तउ, विहरन्तउ, पुरिमतालु संपाइउ ॥ PC. 3 1. 12. धणधण्णुसमिद्धहों, पुहविसिद्धहो जणमणणअणाणन्दणहो । रणवासहो एन्तहिं, रामाणेन्तेहिं किउ उम्माह पट्टणहो ॥ SC. VIII 21. धण-धण्ण-समिद्धहों पहइ-पसिद्धहों जण-मण-णयणाणन्दणहों। वण-वासहाँ जन्तेहि रामाणन्ते हि किउ उम्माहउ पट्टणहों ॥ PC. 31 1 1. 18. खरदूसण लिलेवि । रणेवि ते त्तिण जाइआ॥ णं खअकाले इह । रावणहो पडवी धाइआ|| SC. VIII 25. खर-दूसण गिले वि चन्दणहिहे तित्ति ण जाइय। णं खय-काल-छुह रावणहों पड़ीवी धाइय॥ PC. 41 1. 14. अक्खइ गउतमसामि । तिहुअणें लद्धपसंसहो । सुण सेणिअ उप्पत्ति । रक्खसवाणरवंसहो । SC. VIII 27. अवखइ गोत्तम-सामि, तिहुअण-लद्ध-पसंसहुँ। सूणि सेणिय उप्पत्ति, रक्खस-वाणर-वंसहुँ ।। PC. 5 1. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy