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________________ ग्रन्था नुक्रम १-२ ३-८ .. १-६४ प्रास्ताविक वक्तव्य-श्रीमुनि जिनविजयजी. संपादकीय वक्तव्य-श्री पं० सुखलाल संघवी ज्ञानबिन्दुपरिचय -. ग्रन्थकार ग्रन्थका बाह्यखरूप १. नाम २. विषय ३. रचनाशैली ग्रन्थका आभ्यन्तर खरूप १. ज्ञानकी सामान्य चर्चा दार्शनिक परिभाषाओंकी तुलना २. मति-श्रुतज्ञानकी चर्चा (.) मति और श्रुतकी भेदरेखा का प्रयत्न (२) श्रुतनिश्रित और अश्रुतनिश्रित मति (३) चतुर्विध वाक्यार्थज्ञानका इतिहास जैन धर्मकी अहिंसाका स्वरूप (४) अहिंसाका स्वरूप और विकास (५) षट्स्थानपतितस्व और पूर्वगत गाथा (६) मतिज्ञानके विशेष निरूपणमें नया ऊहापोह ३. अवधि और मनःपर्यवज्ञानकी चर्चा ४. केवलज्ञानकी चर्चा केवलज्ञानके अस्तित्वकी साधक युक्ति (२) केवलज्ञानका परिष्कृत लक्षण (३) केवलज्ञामके उत्पादक कारणोंका प्रश्न (१) रागादि दोषोंका विचार (५) नैरास्य भावनाका निरास (६) ब्रह्मज्ञानका निरास (७) श्रुति और स्मृतियोंका जैनमतानुकूल व्याख्यान (0) कुछ ज्ञातव्य जैन मन्तव्योंका कथन (९) केवलज्ञान-दर्शनोपयोगके भेदाभेदकी चर्चा (१०) ग्रन्थकारका तात्पर्य तथा उनकी स्वोपज्ञविचारणा ज्ञानबिन्दुपरिचयगत विशेषशब्द सूची संपादनमें उपयुक्त ग्रन्थोंकी सूची ज्ञानबिन्दु विषयानुक्रम ज्ञानबिन्दु-मूल ग्रन्थ ज्ञानबिन्दु-टिप्पण ज्ञानबिन्दु-परिशिष्ट शुद्धि-वृद्धिपत्रक SSSSC0000CCWWWWW००० .600000636360.. 263 ८०-८२ १-४९ ५१-११७ ११८-१३५ १३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002518
Book TitleGyanbindu Prakarana
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1942
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size13 MB
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