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अर्पण
सतत ज्ञानोपासना ए जेमनुं प्रिय जीवनसूत्र छे, प्राचीन जैन साहित्य, आगमो अने पुरातन लिपि ज्ञानना एक सिद्धहस्त संशोधक तरीके जेमनी ख्याति भारतवर्ष अने विदेशमां जैन - जैनेतर विद्वानोमा सुप्रसिद्ध छे. हस्त लिखित प्राचीन भंडारोनो उद्धार ए जेमनो प्रिय व्यवसाय छे, जैन दर्शनना प्राण समा आगमसाहित्य ना अपूर्व संशोधन माटे जेओ श्री निरंतर भगीरथ प्रयत्न करी रह्या छे अने ताजेतरमा ज अविश्रान्त श्रमपूर्वक जेसलमेरना प्राचीन जैन आगम, साहित्य भंडारोनो अद्यतन शैलिए उद्धार करी जेओए ज्ञानी महामूली सेवा बजावी छे; तेमज आ सभा तरफथी प्रकाशन पामेला वसुदेव हिन्दी आदि अनेक अपूर्व प्राकृत- संस्कृत साहित्य ग्रंथोना संशोधन संपादन वगेरे कार्यो करी जेओ आ सभा उपर अनुपम महान उपकार करी रह्या छे, ते परम कृपाळु गुरुदेव श्री पुण्यविजयजी महाराजना करकमळमां तेओ श्रीना ज श्रमथी सर्जायेल आ बृहत् कल्पसूत्र छट्टो विभाग ग्रंथ समर्पण करतां अमो कृतज्ञतानो अपूर्व आनंद अनुभवीए छीये.
श्री आत्मकान्ति ज्ञानमंदिर (श्री आत्मानंद भवन) सं० २००९, ज्ञानपंचमी.
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सदानी आभारी
श्री जैन आत्मानंद सभा,
भावनगर.
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