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ज्ञानभंडारोमांना अमुक अमुक पुस्तको तेम ज गायकवाड ओरिएन्टल इन्स्टीट्युट आदिमांना नवां लखाएल पुस्तको जोवाथी ज आवी शके छे ।
खरुं जोतां शास्त्रलेखन ए वस्तु छ के-तेने माटे जेम महत्त्वना उपयोगी ग्रंथोर्नु पृथक्करण अति झीणवटपूर्वक करवामां आवे एटली ज बारीकाईथी पुस्तकने लखनार लहियाओ, तेमनी लिपि, ग्रंथ लखवा माटेना कागळो, शाही, कलम, वगेरे दरेके दरेक वस्तु केवी होवी जोईए एनी परीक्षा अने तपासने पण ए मागी ले छे ।
ज्यारे उपरोक्त बायतोनी खरेखरी जाणकारी नथी होती त्यारे घणीवार एवं बने छे केलेखको ग्रंथनी लिपिने बराबर उकेली शके छे के नहि ! तेओ शुद्ध लखनारा छे के भूलो करनारा वधारनारा छे ! तेओ लखतां लखतां वचमाथी पाठो छूटी जाय तेम लखनारा छे के केवा छे ! इरादापूर्वक गोटाळो करनारा छे के केम ! तेमनी लिपि सुंदर छे के नहिं ! एक सरखी रीते पुस्तक लखनारा छे के लिपिमां गोटाळो करनारा छे ! इत्यादि परीक्षा कर्या सिवाय पुस्तको लखाववाथी पुस्तको अशुद्ध, भ्रमपूर्ण अने खराब लखाय छ। आ उपरांत पुस्तको लखाववा माटेना कागळो, शाही, कलम वगेरे लेखननां विविध साधनो केवां होवां जोईए एनी माहिती न होय तो परिणाम ए आवे छे के--सारामां सारी पद्धतिए लखाएलां शास्त्रोपुस्तको अल्प काळमां ज नाश पामी जाय छे । केटलीक वार तो पांचपचीस वर्षमां ज ए ग्रंथो मृत्युना मोमां जई पडे छे।
पूज्यपाद गुरुवर्यश्री उपरोक्त शास्त्रलेखनविषयक प्रत्येक बाबतनी झीणवटने पूर्णपणे समजी शकता हता एटलं ज नहि, पण तेओश्रीना हस्ताक्षरो एटला सुंदर हता अने एवी सुंदर अने स्वच्छ पद्धतिए तेओ पुस्तको लखी शकता हता के-भलभला लेखकोने पण आंटी नाखे । ए ज कारण हतुं के, गमे तेवा लेखक उपर तेमनो प्रभाव पडतो हतो अने गमे तेवा लेखकनी लिपिमांथी तेओश्री कांई ने कांई वास्तविक खांचखंच काढता ज ।
पूज्यपाद गुरुदेवनी पवित्र अने प्रभावयुक्त छाया तळे एकी साथे त्रीस त्रीस, चालीस चालीस लहियाओ पुस्तको लखवानुं काम करता हता। तेओश्रीना हाथ नीचे काम करनार लेखकोनी सर्वत्र साधुसमुदायमा किम्मत अंकाती हती।
ढूंकामां एम कहेवू पडशे के जेम तेओश्री शास्त्रलेखन अने संग्रह माटेना महत्त्वना ग्रंथोनो विभाग करवामां निष्णात हता, ए ज रीते तेओश्री लेखनकलाना तलस्पर्शी हार्दने समजवामां अने पारखवामां पण हता।
पूज्यपाद गुरुवरनी पवित्र चरणछायामां रही तेमना चिरकालीन लेखनविषयक अनुभवोने
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