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उपदेश पुष्पमाला/ 179
चमतव्या.
एक्कं पंडियमरणं, छिंदइ जाईसयाई बहुयाई। एक पि बालमरणं, कुणइ अणंताई दुक्खाइं।। 484।। एकं पण्डितमरणं छिनत्ति, जातिशतानि बहूनि बहुलानि। एकं अपि बालमरणं, करोति अनन्तानि दुःखानि।। 484।। एक पण्डित मरण सौ भवों के संसार परिश्रमण समाप्त करने वाला होता है तथा एक बाल मरण अनन्त भवों तक दुःख प्रदान करने वाला होता है।
धीरेण वि मरियव्वं, काउरिसेण वि अवस्समरियव्वं । ता निच्छियम्मि मरणे, वरं खु धीरत्तणे मरियं ।। 485।। धीरेणापि मर्तव्यं कापुरूषणापि मर्तव्यं अपि अवश्यं मर्तव्यं ।
तत् निश्चिते मरणे, वरं खलु धीरत्वे एव मरणं ।। 485 ।। धैर्यवान् भी मरता है, कायर पुरूष भी मरता है। अतः जब मृत्यु निश्चित ही है तो फिर धीरता के साथ मृत्यु का वरण ही श्रेष्ठ माना गया हैं।
पाओवगमेण इंगिणि-भत्तपकरण्णाइविबुहमरणेणं। जंति महाकप्पेसु, अहवा पाविति सिद्धिसुहं ।। 486 || पादपोपगमेन इंगिनी, भक्तपरिज्ञादिविवुध-मरणमेव । यान्ति महाकल्पेषु, अथवा प्राप्नुवन्ति सिद्धिसुखं ।। 486 ।। पादपोपगमन इंगिणीमरण तथा भक्त परिज्ञा मरण के रूप में पण्डित मरण द्वारा मृत प्राणी या तो महाकल्पों अर्थात् श्रेष्ठ देव लोक में उत्पन्न होते हैं अथवा सिद्धि सुख को प्राप्त करते हैं।
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