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________________ उपदेश पुष्पमाला / 171 एवं सभी प्रकार का सौख्य प्रदान करती है । यह चिन्ता रहित सुख अर्थात् स्वर्ग एवं अपवर्गादि के सुख भी प्रदान करती है । पुप्फेसु कीरजुयलं, गंधाइसु विमलसंखवरसेणा । सिववरुणसुजससुव्वयं- कमेण पूयाए आहरणा ।। 465 || पुष्पेषु कीरयुगलं, गंधादिषु विमलशंखवरसेनाः । शिववरूण-सुयश-सुव्रत - क्रमेण पूजायां उदाहरणानि ।। 465 ।। पुष्पार्चना के फल का उदाहरण शुक युगल तथा गन्ध पूजा के फल का उदाहरण विमल का कथानक है । अवशिष्ट प्रकार की पूजाओं के फल के दृष्टातों के रूप में क्रमशः शंख, वरषेणा, शिव, वरूण, सुयश और सुव्रत के कथानक सिद्धान्त ग्रन्थों में वर्णित है । अन्नो मुक्खम्मि जओ, नत्थि उवाओ जिणेहिं निद्दिट्ठो । तम्हा दुहओ चुक्का, चुक्का सव्वाण वि गईणं || 466 || अन्यः मोक्षे यतः, नास्तिउपायः जिनैः निर्दिष्टः । तस्मात् विशिष्टयतिधर्म, भ्रष्टाः भ्रष्टाः सर्वेभ्यः अपि गतिभ्यः ।। 466 || श्रावक के लिये पूजा विधान के अतिरिक्त कोई दूसरा विधान मोक्ष के हेतु के रूप में जिनेन्द्र द्वारा निर्दिष्ट नहीं है। अतः जो विशिष्ट यति धर्म और श्रावक धर्म दोनों से च्युत् होता है वह व्यक्ति सभी प्रकार से पतित ही कहा जायेगा ऐसा समझना चाहिये । तो अवगयपरमत्थो, दुविहे धम्मम्मि होज्ज दढचित्तो । समयम्मि जओ भणिया, दुलहा मणुयाइसामग्गी ।। 467 || ततोऽवगतपरमार्थः, द्विविधे धर्मे भवेः दृढ़चित्तः । समये यतः भणितः दुर्लभा मनुजादिसामग्रीः ।। 467 || इसलिये परमार्थ (तत्त्व) को अवगत कर यति धर्म अथवा श्रावक धर्म ऐसे दो भेद वाले किसी भी धर्म में दृढ़ चित्त हो जाएं, क्योंकि सिद्धान्त ग्रन्थों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002507
Book TitleUpdesh Pushpamala
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, P000, & P050
File Size7 MB
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