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________________ पर श्री संघ इस ठहराव में परिवर्तन या सुधार या न्यूनाधिकता करना चाहे तो कर सकता है । यह श्री संघ के अधिकार में है ।' [ शान्ताक्रूझ श्री संघ को आ. म. श्री विजयवल्लभसूरिजी महाराज ने जो उत्तर दिया है उसमें वे कहते हैं किसंघ जिस समय जिस आवश्यकता को समझ कर जिस द्रव्य का जहां उपयोग करने का निर्णय करे, वैसा करने का उसको अधिकार है ।' इस लेख के अनुसार तो संघ को यह अधिकार मिल जाता है कि भगवान् के भंडार में आये हुए चावल, पैसे आदि कोई भी वस्तु जो भगवान् की भक्ति के लिए भक्तों ने समर्पित की हो, उसको भी अपने उपयोग में यदि वह लेवे तो कोई नियम, मर्यादा या व्यवस्था नहीं रह सकती और अति प्रवृत्ति की संभावना रहती है; संघ में कोई व्यवस्था या शास्त्रीय नियमन जैसा भी न रह पावेगा । इस बात को लक्ष्य में रखकर शान्ताक्र झ जैन संघ के प्रमुख सुश्रावक जमनादास मोरारजी जे. पी. ने उस समय आ. म. श्री विजयवलभसूरिजी म श्री के पत्र का उस समय जो स्पष्ट और व्यवस्थित उत्तर दिया वह सचमुच मननीय है और जैन संघ की शास्त्रानुसारी मर्यादा के पालन की निष्ठा का सूचक है तथा एक सुश्रावक के अवसरोचित सुसंगत कर्तव्य के अनुरूप ही है । ] ( ६ ) शान्ताक्रुझ श्री संघ द्वारा श्री. म. श्री विजयवल्लभसूरिजी म. श्री के पत्र का दिया गया श्रवसरोचित उत्तर सविनय वन्दना पूर्वक लिखना है कि, आप श्री की ओर से ता. २८-९-३८ को लिखा हुआ पत्र मिला । उसके लिए हम आपके अत्यन्त आभारी हैं । स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य ] [ 59
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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