SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चवदह स्वप्न, पारणा, घोडिया तथा उपधान की माला को बोली का घी शास्त्रीय आधार से देवद्रव्य में ही. ले जाना चाहिए। उसे साधारण खाते में ले जाना शास्त्र और परम्परा के अनुसार सर्वथा अनुचित है । इस संबंध में शास्त्रीय पाठ है। के जिनेन्द्र विजय का धर्मलाभ (वर्तमान में पंन्यासजो म. श्री जिनेन्द्र विजयजी गणिवर) मु. लीम्बडी श्रा. सु. ७ (१८) धर्मविजय आदि की तरफ सेसुश्रावक अमीलाल रतीलाल मु. वेरावल योग्य। धर्मलाभ पूर्वक लिखना है कि आपका पत्र मिला। समाचार विदित हुए । उत्तर में लिखना है कि स्वप्न, पारणा आदि की बोली के घी की आय शास्त्र दृष्टि से देवद्रव्य में जाती हैं। इसी तरह तीर्थ माला, उपधान की माला आदि के घी को आय भी देवद्रव्य में जाती है । इसके लिए शास्त्र में पाठ है। इसलिए देवद्रव्य में ही उसे ले जाना. योग्य है । धर्म साधन में उद्यम करना। द. धर्मविजय का धर्मलाभ (उक्त अभिप्राय पू. आ. म. श्री विजय रामचन्द्र सूरीश्वरजी महाराजा के शिष्य रत्न उपाध्यायजी धर्मविजयजी महाराज का है।) 26 ] [ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy