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________________ नहीं करते हैं, उन विचारों की क्या दशा होगी ? इसी तरह बोली में बोली हुई रकम को अपने पास मनमाने ब्याज से रखे रहते हैं, उनके लिए वह कृत्य सचमुच सेनप्रश्नकार पूज्यपादश्री फरमाते हैं उस तरह 'दुष्ट फल देने वाला बनता है' यह निश्शंक है। - ‘देवद्रव्य के मकान में भाड़ा देकर रहना चाहिये या नहीं ? इस विषय में पं. हर्षचन्द्र गणिवर कृत प्रश्न इस प्रकार हैं : 'किसी व्यक्ति ने अपना घर भी जिनालय को अर्पण कर दिया हो, उसमें कोई भी श्रावक किराया देकर रह सकता है या नहीं ? इस प्रश्न के उत्तर में पू. आ. म. श्री सेनसूरिजी फरमाते हैं कि-'यद्यपि किराया देकर उसमें रहने में दोष नहीं लगता तो भी बिना किसी विशेष कारण के उस मकान में भाड़ा देकर भी रहना उचित नहीं लगता क्योंकि देवद्रव्य के भोगं आदि में निःशूकता का प्रसंग हो जाता है । (सेनप्रश्न, उल्लास ३ पेज २८८ ) पू. आ. म. श्री वि. सेनसूरिजी महाराज ने जो जगद्गुरु आ. म. श्री विजयहीरसूरि म. श्री के पट्टालंकार थे-कितनी स्पष्टता के साथ यह बात कही है । आज यह परिस्थिति जगहजगह देखने में आती है। देवद्रव्य से बंधवाये हुए मकानों में श्रावक रहकर समय पर भाड़ा देने में आनाकानी करते हैं, उचित रीति से भी किराया बढ़ाने में. टालमटोल करते हैं और देवद्रव्य की सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचता है, इस विषय में उन्हें तनिक भी खेद नहीं होता। देवद्रव्य के रक्षण की बात तो दूर परन्तु उसके भक्षण तक की निःशूकता आ जाती है । यह कई जगह देखने में जानने में आया है । इस दृष्टि से पू. आ. म. श्री ने स्पष्टता स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ] [ 127
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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