________________
श्रावक परिग्रह के विष को उतारने हेतु भगवान्
की द्रव्य-पूजा करे! 'आज इतने सारे जैनों के जीवित होते हुए भी और उसमें समृद्धिशाली जैनों के होने पर भी एक बूम ऐसी भी चल पड़ी है कि-'इन मन्दिरों की रक्षा कौन करेगा ? कौन इन्हें सम्भालेगा? भगवान् की पूजा के लिए केसर आदि कहाँ से लावें? अपनी कही जाने वाली भगवान् की पूजा में भी देवद्रव्य का उपयोग क्यों न हो? इससे आजकल ऐसा प्रचार भी चल रहा है कि- भगवान् की पूजा में देवद्रव्य का उपयोग शुरु करो।' कहीं कहीं तो ऐसे लेख भी होने लगे हैं कि-मन्दिर की आवक में से पूजा की व्यवस्था करनी ! ऐसा जब पढ़ते हैं या सुनते हैं तब ऐसा लगता है कि क्या जैन समाप्त हो गये हैं ? देवद्रव्य पर सरकार की नीयत बिगड़ी है, ऐसा कहा जाता है, परन्तु आज ऐसी बातें चल रही हैं जिनसे लगता है कि देवद्रव्य पर जैनों की नीयत भी बिगड़ी है। नहीं तो, भक्ति स्वयं को करनी है और उसके देवद्रव्य काम में लेना है, यह कैसे हो सकता है ? आपत्तिकाल में देवद्रव्य में से भगवान् की पूजा करवाई जाय, यह बात अलग है और श्रावकों को पूजा करने की सुविधा देवद्रव्य में से दी जाय, यह बात अलग है । जैन क्या ऐसे गरीब हो गये हैं कि अपने द्रव्य से भगवान की पूजा नहीं कर सकते ? और इसलिये देवद्रव्य में से उनसे भगवान् की पूजा करवानी है ? जैनों के हृदय में तो यही बात होनी चाहिये कि 'मुझे मेरे द्रव्य से ही भगवान् की द्रव्यपूजा करनी है।' देवद्रव्य की बात तो दूर रही, परन्तु अन्य श्रावक के द्रव्य से भी पूजा करने को कहा जाय तो जैन कहते कि-'उसके द्रव्य से हम पूजा करें तो उसमें हमें क्या लाभ ? हमें तो हमारी सामग्री से पूजा-भक्ति करनी है !
स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ]
[119