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________________ शेठ रतिलाल प्रेमचन्द शाह और दूसरे नौ गृहस्थों के हस्ताक्षर से ता. ६-९-६६ को 'श्री राजनगर साधु सम्मेलन का स्वप्नों के घी सम्बन्धी असल ठहराव' इस शीर्षक से प्रकाशित हेन्डबिल के लेख से खड़ी हुई गैरसमझ को दूर करने के लिये निम्न खुलासा प्रकट करने में आता है : (१) प्रस्तुत हेन्डबिल को शुरुआत में लिखा गया है कि 'जिस गांव में जिस रीति से स्वप्नों की बोली का घी जिस खाते में ले जाया जाता हो वहां उसी तरह से ले जाया जाय' इस प्रकार का ठहराव ३१ मार्च १९३४ चैत्र वदो १ शनिवार के दिन अखिल हिन्द मुनि सम्मेलन में हुआ था।" परन्तु श्री अखिल हिन्द मुनि सम्मेलन के ठहराव के नाम से लिखी गई ऊपर की बात सत्य से सर्वथा दूर है। ऐसा 'अखिल भारतवर्षीय श्री जैन श्वेताम्बर मुनि सम्मेलने पट्टक रूपे सर्वानुमते करेल निर्णयों' नामक अहमदाबाद श्रीसंघ की तरफ से छपायी हुई पुस्तिका को देखने से स्पष्ट प्रतीत हो जाता है । अहमदाबाद श्री शेठ आणंदजी कल्याणजी को पेढी पर असल पट्टक है और उसे देखने से स्पष्ट मालूम पड़ेगा कि इस हेन्डबिल में बताई हुई ऊपर की बात सत्य नहीं है। श्री मुनि सम्मेलन द्वारा सर्वानुमति से किये गये निर्णयों में से देवद्रव्य सम्बन्धी निर्णय की कलम २ में ऐसा कहा गया है कि क. (२) 'प्रभु के मन्दिर में या मन्दिर के बाहर चाहे जिस स्थान पर प्रभु के निमित्त से जो जो बोली बोली जाय वह सब देवद्रव्य कहा जाता है।' स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ] [ 113
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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