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फलस्वरूप राधनपुर संघ का अमुक वर्ग इस अशास्त्रीय प्रवृत्ति से आर्थिक स्थिति, धर्मश्रद्धा आदि से उत्तरोत्तर क्षीण होता जा रहा है । अब भी यदि वे संब का कल्याण चाहते हैं तो शीघ्र से शीघ्र इस भूल को सुधार लें, यही हितावह है।
शासनदेव उनको सद्बुद्धि दे और संघ के कल्याण के लिए भी संघ में क्लेश बढ़ाने के बजाय संघ में ऐक्य और शान्ति के प्रयत्न करें, इसमें सबका-संघ का-शासन का हित है।
पर्चे में सन् १९३४ ( सं. १९९० ) में मुनि सम्मेलन का ठहराव हुआ, ऐसा बताया हैं और नीचे सं. १९४३ में राधनपुर के संघ द्वारा ठहराव किये जाने और पू. आत्मारामजी म. द्वारा सम्मति दिये जाने का उल्लेख है-ये दोनों बातें विरुद्ध हैं। क्योंकि सं. १९४३ के बाद और पू. आत्मारामजी म. के स्वर्गवास के बाद मुनि मुम्मेलन तो सं. १९९० में हुआ है । उसमें समग्र संघ ने ठहराव किया है इससे उसके पहले किसी संघ ने कोई ठहराव किया हो या किसी आचार्य ने कोई अभिप्राय दिया हो तो वह भी रद्द हो जाता है । मुनि सम्मेलन के ठहराव को मानने हेतु प्रत्येक गांव का संघ बाध्य है । यह विचार करना चाहिए।
[स्वप्न द्रव्य को देवद्रव्य ही मानने वाले और निश्चित रूप से बिना किसी हिचक के इसके पक्ष में अपने विचार प्रकट करने वाले श्रमण भगवन्तों के अभिप्राय ऊपर दिये गये हैं। उन श्रमण भगवन्तों में से आज कितने ही मुनि भगवन्त पू. आचार्य पद पर विराजमान हैं। अतः यह कहने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती है कि स्वप्नों की उपज को देवद्रव्य मानने के
स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ।
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