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के नाम से प्रकाशित 'गप्पदीपिका समीर' नामक पुस्तक देख लेना । पू. गुरुदेव के चातुर्मास में सागरसंघ ने राधनपुर में ठहराव किया हो इतने मात्र से उनकी सम्मति नहीं मानी जा सकती । संभवतः वे जानते भी नहीं होंगे (कि ऐसा ठहराव किया गया है ।)
(२४)
पू. आचार्य म. मेरुप्रभविजयसूरिजी महाराज, बोरीवली (बम्बई) का. सु. ६ स्वप्नों के पैसे देवद्रव्य में जाने हैं, इसलिए राधनपुर के पर्चे में जो लिखा है वह असत्य है । श्रमण संघ ने उस प्रकार का कोई ठहराव नहीं किया है । उस पर्चे की कोई कीमत नहीं है ।
(२५)
पूज्य पंन्यासजी म. विनयविजयजी म.
राजगृही, (बिहार)
का. सु. १३
स्वप्नों की बोली के घी को देवद्रव्य में ले जाने का वंश परम्परा का रिवाज है ।
(२६)
पू. आ. म. रामसूरिजी म. ( हेलावाला )
पाटण ( गुज.) का. सु. १५ भगवन्त के जन्मबोले जाने वाला
श्री पर्युषण पर्व में परमात्मा श्री वीर वांचन के दिन स्वप्नादि निमित्त बोली रूप में द्रव्य, देवद्रव्य ही होना चाहिए । अन्य रूप में उसे गिनने से सिद्धान्त और परम्परा का विरोध होगा । अतः स्वप्नादि द्रव्य को देवद्रव्य ही स्वीकार करना चाहिए ।
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[ स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य