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शुभध्यान होता है।
उपसर्गाः क्षयं यांति छिद्यन्ते विघ्नवल्लयः। . . मनः प्रसन्नतामेति पूज्य- माने जिनेश्वरे ॥
भावभक्ति से जिनेश्वर भगवान को पूजने पर आने वाले उपसर्ग नाश होते हैं, अंतराय कर्म भी टूट जाते है और मन की प्रसन्नता भी प्राप्त होती है।
अतिचार :- तथा देवद्रव्य, गुरुद्रव्य, साधारण द्रव्य भक्षित उपेक्षित प्रज्ञापराधे विणास्यो विणसंतो, उवेख्यो छती शक्ति से सार संभाल न कीधी । भक्षण करने वालों को अतिचार में देवद्रव्य गुरुद्रव्य साधारण द्रव्य भक्षण किया भक्षण करने वाले की उपेक्षा की जानकारी न होने से देवद्रव्य का विनाश करे और विनाश करनेवाले की उपेक्षा करे और शक्ति होने पर भी सार संभाल नही की।
द्रव्य सप्ततिका स्वोपज्ञ टीका :जिणदवऋणं जो धरेइ तस्य गेहम्मि जो जिमइ सड्ढो । पावेण परिलिंपड़ गेण्हंतो वि हु जइ भिक्खं ॥
जो जिन-द्रव्य का कर्जदार होता है उसके घर श्रावक जिमता है वह पाप से लेपा जाता है साधु भी आहार ग्रहण करता है तो वह भी पाप से लेपा जाता है।
प्रश्न - देवद्रव्य-भक्षक-गृहे जेमनाय गन्तुं कल्पते ? नवा इति-गमने वा तद् जेमन-निष्क्रय-द्रव्यस्य देवगृहे मोक्तुमुचितम् नवा इति ? मुख्यवृत्त्या तद् गृहे भोक्तुं नैव कल्पते ।
देवद्रव्य का भक्षण करने वाले के घर जिमने जाना कल्पता है या नहीं ? और जिमने जावे तो वह जिमन का निष्क्रय द्रव्य देवमंदिर में देना उचित है या नही ? मुख्यतया उस घर जिमने जाना कल्पता नहीं है ।
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देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो? *६२E R