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________________ गृहचैत्यनैवेद्यचोक्षादि तु देवगृहे मोच्यम् ॥ श्राद्धविधि ग्रन्थकार कहते है कि घर मंदिर में आये नैवेद्य, चावल, सोपारी, नारियल वगैरह जो कुछ आवे वह संघ के मन्दिर में दे देना चाहिए । श्राद्ध विधि ग्रन्थ में आचार्य श्री रत्नशेखर सूरीश्वरजी म. फरमाते है के देवगृहागतं नैवैद्याक्षतादि स्व वस्तुवत् मुषकादे सम्यग् रक्षणीयं । सम्यग् मूल्यादियुक्तया च विक्रेयं - मंदिर में प्रभु भक्ति के लिए रखे गये नैवैद्य चावल फलादि वस्तु को अपने स्वयं की वस्तु हो उस तरह चूहे आदि से अच्छी तरह से रक्षण करना चाहिए और उसको उचित मूल्य से बेच देना चाहिए। बेचने से आये हुए रूपये देव द्रव्य में ही जमा करवाना चाहिए । नोट :- पूजारी आदि को दिया जाता है वह उचित नहीं है । कई जगह पर घर मन्दिर में प्रभुभक्ति के निमित्त से इकट्ठे हुए देवद्रव्य का व्यय घर मन्दिर के जीर्णोद्धार में रंग-रोगानादि करने में तथा पूजा के लिए केसर सुखडादि की व्यवस्था करने में करते हैं वह उचित नहीं है । क्योकि व्यक्ति का मन्दिर कहलाये और उसका निभावादि देवद्रव्य में से करे यह उचित नहीं है । व्यक्ति के मन्दिर में व्यक्ति को स्वयं ही अपने धन से निभावादि की व्यवस्था करनी चाहिये । अपने मन्दिर में आय हुई वस्तु दो वो सब आवक संघ के मन्दिर में दे देने की हैं ऐसा श्राद्धविधि आदि शास्त्र का विधान है । देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * ५३
SR No.002499
Book TitleDevdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalratnasuri
PublisherAdhyatmik Prakashan Samstha
Publication Year1997
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
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