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________________ ११. शास्त्र के अनुसार बोली की आवक देवद्रव्य ही है । स्वप्नों की और मालारोपण की उपज देवद्रव्य ही है । इस विषय में पृ.आ. सागरानंद सूरीश्वरजी महाराज श्री का स्पष्ट शास्त्रानुसारी फरमान - स्वप्नों की आय के विषय में तथा उपधान तप की माला संबंधी आय के विषय में श्री संघ को स्पष्ट रीति से मार्गदर्शन देने हेतु पू. पाद आचार्य भगवंत श्री सागरानन्दसूरीश्वरजी महाराज श्रीने “सागर समाधान" ग्रन्थ में जो फरमाया है वह प्रत्येक धर्माराधक के लिए जानने योग्य है। प्रश्न-२९७ उपधान में प्रवेश तथा समाप्ति के अवसर पर माला की बोली की आय ज्ञानखाते में न ले जाते हुए देवद्रव्य में क्यों ले जायी जाती है ? • समाधान :- उपधान ज्ञानाराधन का अनुष्टान है, इसलिए ज्ञान खाते में उसकी आय-जा सकती है - ऐसा कदाचित् आप मानते हो । परन् उपधान में प्रवेश से लेकर माला पहनने तक की क्रिया समवसरण रूप नंदि के आगे होती है । क्रिया प्रभुजी के सम्मुख की जाने के कारण उनकी उपज देवद्रव्य में ले जानी चाहिए। प्रश्न-२९८ स्वप्नों की उपज तथा उनका घी देवद्रव्य खाते में ले जाने की शुरुआत अमुक समय से हुई है तो उसमें परिवर्तन क्यों नहीं किया जा सकता है ? .. समाधान :- अर्हत परमात्मा की माता ने स्वप्न देखे थे अतः वस्तुतः उसकी सारी आय देवद्रव्य ही है । अर्थात् देवाधिदेव के उद्देश्य देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * ३३
SR No.002499
Book TitleDevdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalratnasuri
PublisherAdhyatmik Prakashan Samstha
Publication Year1997
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
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