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________________ का धन व्याजादि में देवे अथवा मंद बुद्धि हान से थोड धन से कार्य सिद्ध होगा या बहुत धन से इसकी जानकारी न होने से जानकारी पाय बिना ज्यों त्यों बिना समझे (बिनजरूरी भी) देवद्रव्यादि का व्यय कर और झुट लेख लिखें। मंदिरादि कार्यों में जो कारीगर, मजदूर वगैरह काम करने के लिए रखना हो तो उनका पगार-मजदूरी वगैरह लोक अपनी बिल्डींग वगैरह बनाने में जो देते है उस मुताबिक देने का निश्चित करना चाहिए और मंदिरादि के लिए कोई भी चीज खरीदनी है तो वह बाजार भावसे खरीदनी चाहिए । खोटी उदारता रखकर मंदिरादि की संस्था के द्रव्य का दुर्व्यय करना वह स्व और पर (कारीगरादि) के लिए देवद्रव्यादिभक्षणादि के पापबन्ध का कारण बनता है । अपने धन से मंदिरादि के कार्य करने में उदारता करो वह बात अलग है लेकिन धर्म संस्था के द्रव्य से कार्य करना है तो किफायत भाव से कार्य करके मितव्ययिता करनी आवश्यक है। मन्दिर के पुजारी आदि से तथा साफ-सफाई आदि के लिए रखे उपाश्रयादि के आदमी से अपना कोई भी कार्य नहीं करवाना चाहिये । अपना काम करवाना हो तो उसको अपनी ओर से पैसे देकर ही करवाना उचित है अन्यथा देवद्रव्यादि के भक्षण का दोष लगेगा और यह कार्य भी पुजारी आदि के द्वारा इस ढंग से तो नहीं ही करवाना चाहिये कि जिससे मन्दिर के कार्यों में प्रभुभक्ति में व्याघात होवे। जिनमन्दिरादि के संचालन करने वाले ट्रस्टीगण के दिमाग में यह बात निश्चित रूप से होनी चाहिए कि ट्रस्टी पद सत्ता भोगने का पद नहीं है लेकिन जिनमन्दिरादि संस्था के सेवक बनकर कार्य करने का पद है। आज कई जगह ट्रस्टी लोगों ने ट्रस्टी पद को मान-सन्मान-सत्ता और प्रतिष्टा का पद बना दिया है। अतः ये लोग जिनमन्दिरादि की सार देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * २५ ॥
SR No.002499
Book TitleDevdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalratnasuri
PublisherAdhyatmik Prakashan Samstha
Publication Year1997
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
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