SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के लिए फूल लिये हों और उन फूलों की गूंथनी करनी हो। ऐसा कोई कार्य हो, तो वह श्रावक सामायिक पार कर, उस कार्य द्वारा द्रव्यपूजा का भी लाभ ले ले । शास्त्र ने यहाँ स्पष्ट किया है कि द्रव्यपूजा की सामग्री अपने पास है नहीं और द्रव्यपूजा के लिए जरूरी सामग्री का खर्च निर्धनता के कारण स्वयं नहीं कर सकता है, तो सामायिक पार कर दूसरेकी सामग्री द्वारा वह इस प्रकार का लाभ ले, यह योग्य ही है । और शास्त्र ने ऐसा भी कहा है कि- 'प्रतिदिन अष्ट प्रकारी आदि पूजा न कर सकता हो तो कम से कम अक्षत पूजा के द्वारा भी पूजन का आचरण करना चाहिए ।' (जैन प्रवचन वर्ष - ४३ अंक - १६) - पवरेहिं साहणेहिं पायं भावो विजायए पवरो । णय अण्णो उपयोगो, एएसिं स्याणं लट्ठयरो ॥१॥ प्रभु भक्ति में, उत्तम (शुद्ध) सामग्री होने से प्रायः भाव भी उत्तम होते है और सत्पुरुषों को अपनी सामग्री को जिन भक्ति में लगाने जैसा दूसरा कोई उपयोग नहीं हैं । (श्री संबोध प्रकरण देवाधिकार गा. १६७ ) जैनंतर भी अपने मंदिर में जाते है तब धूप, फूल, फलादि खुद के लेकर जाते है । देवगृहे देवपूजाऽपि स्वद्रव्यंणैव यथा शक्ति कार्या देव मंदिर में प्रभु पूजा भी अपने स्वयं के द्रव्य से ही यथाशक्ति करनी चाहिए। (श्राद्धविधि ग्रन्थ) देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * २३
SR No.002499
Book TitleDevdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalratnasuri
PublisherAdhyatmik Prakashan Samstha
Publication Year1997
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy