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[543 ] षट्त्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
लोएगदेसे ते सव्वे , न सव्वत्थ वियाहिया।
एत्तो कालविभागं तु, वुच्छं तेसिं चउव्विहं॥१७३॥ ये सभी लोक के एक देश (अंश या भाग) में ही हैं, समस्त लोक में नहीं होते-ऐसा कहा गया है। इससे आगे अब मैं इन जलचर जीवों का कालविभाग चार प्रकार से कहूँगा ॥ १७३॥
It is said that they exist only in a section of the universe (Lok) and not in the whole. Now I will describe fourfold division with regard to time of these aquatic animals. (173)
संतइं पप्पऽणाईया, अपज्जवसिया वि य।
ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य॥१७४॥ संतति-प्रवाह की अपेक्षा ये जलचर जीव अनादि-अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि-सान्त भी हैं॥ १७४॥ .
In context of continuity these (aquatic animals) are beginningless and endless. However in context of existence at a particular place they have a beginning as well as end: (174)
एगा य पुव्वकोडीओ, उक्कोसेण वियाहिया।
आउट्ठिई जलयराणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया॥१७५ ॥ इन पंचेन्द्रिय जलचर जीवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति एक करोड़ पूर्व (७,०५,६०,००,००,००,००० वर्ष) की है और जघन्य आयुस्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण बताई गई है। १७५ ॥
The maximum life-span of these five-sensed aquatic animals is ten million Purvas (7,05,60,00,00,00,000 years) and the minimum is one Antarmuhurt (less than fortyeight minutes). (175)
पुव्वकोडीपुहत्तं तु, उक्कोसेण वियाहिया।
कायट्टिई जलयराणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया॥१७६॥ इन पंचेन्द्रिय जलचर जीवों की कायस्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्टतः पूर्व कोटि-पृथक्त्व (२ से ९ करोड़ पूर्व) की बताई गई है। १७६ ।।
The maximum life-span for the body-type of these five-sensed aquatic animals is Purva koti prithakatva (20 to 90 million Purvas) and minimum is of one Antarmuhurt. (176)
· अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहत्तं जहन्नयं।
विजदमि सए काए, जलयराणं तु अन्तरं॥१७७॥ स्वकाय-जलचरकाय छोड़कर तथा अन्य योनियों में भ्रमण करके पुनः जलचरकाय में उत्पन्न होने तक का मध्यवर्ती अन्तराल-अन्तर जलचर जीवों का अन्तर अधिक से अधिक अनन्तकाल का और कम से कम अन्तर्मुहूर्त का होता है। १७७॥
The maximum intervening period between once leaving the body-type (five-sensed aquatic animal body), (taking rebirth in other body-types and moving in cycles of rebirth