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तर सचित्र उत्तराध्ययन सत्र
षट्त्रिंश अध्ययन [512]
रसओ परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया।
तित्त-कडुय-कसाया, अम्बिला महुरा तहा॥१८॥ जो (पुद्गल) रस से परिणत हैं, वे पाँच प्रकार के कहे गये हैं-(१) तिक्त-तीखा या चरपरा, (२) कटुक-कड़वा, (३) कषायला, (४) अम्ल-खट्टा, और (५) मधुर-मीठा ॥ १८॥
The transformation of aggregates of non-life with form (matter) in context of taste is said to be of five kinds—(1) bitter, (2) pungent, (3) astringent, (4) sour, and (5) sweet. (18)
फासओ परिणया जे उ, अट्टहा ते पकित्तिया।
कक्खडा मउया चेव, गरुआ लहुया तहा॥१९॥ जो (पुद्गल) स्पर्श से परिणत होते हैं, वे आठ प्रकार के कहे गये हैं-(१) कर्कश-खुरदरा, (२) मृदु-मुलायम, कोमल, (३) गुरु-भारी, (४) लघु-हल्का - ॥ १९॥
The transformation of aggregates of non-life with form (matter) in context of touch is said to be of eight kinds-(1) hard, (2) soft, (3) heavy, (4) light, -(19)
सीया उण्हा य निद्धा य, तहा लुक्खा व आहिया। .
इइ फासपरिणया एए, पुग्गला समुदाहिया॥२०॥ (५) शीत-ठंडा, (६) उष्ण-गर्म, (७) स्निग्ध-चिकना, (८) रूक्ष-कठोर, कड़ा-इस प्रकार ये स्पर्श से परिणत पुद्गल सम्यक् रूप से कहे गये हैं॥ २०॥
(5) cold, (6) hot, (7) smooth, and (8) rough, thus the aggregates transformed in context of touch are properly described. (20)
संठाणपरिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया।
परिमण्डला य वट्टा, तंसा चउरंसमायया॥२१॥ संस्थान से परिणत जो पुद्गल होते हैं, वे पाँच प्रकार के कहे गये हैं-(१) परिमण्डल (चूड़ी की तरह गोल), (२) वृत्त-गेंद की तरह गोल, (३) त्र्यंश-त्रिकोणाकार, (४) चतुरन-चौकोर, चौकोन (वर्गाकार), और (५) आयताकार ॥ २१॥
The transformation of aggregates of non-life with form (matter) in context of constitution is said to be of five kinds-(1) circular, (2) spherical, (3) triangular, (4) square, and (5) rectangular. (21)
वण्णओ जे भवे किण्हे, भइए से उ गन्धओ।
रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य॥२२॥ कृष्ण (काले) वर्ण (रंग) वाला पुद्गल-गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान से भी भाज्य-अनेक विकल्पों (प्रकारों) वाला होता है॥ २२ ॥
The matter of black colour is further divisible many ways by attributes of smell, taste, touch and constitution. (22)
वण्णओ जे भवे नीले, भइए से उ गन्धओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य॥२३॥