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[507 ] षट्त्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्रता
छत्तीसइमं अज्झयणं : जीवाजीवविभत्ती
षट्त्रिंश अध्ययन : जीवाजीव-विभक्ति || Chapter-36 : THE DIVISION OF LIFE AND NON-LIFE
जीवाजीवविभत्तिं, सुणेह मे एगमणा इओ।
जं जाणिऊण समणे, सम्म जयइ संजमे॥१॥ जीव और अजीव के विभाग (विभक्ति) को मुझसे एकाग्रचित्त होकर सुनो; जिसे जानकर श्रमण संयम में सम्यक् प्रकार से यतनाशील बनता है॥ १॥ .
Hear from me attentively about the division of soul and non-soul; knowing which an ascetic carefully exerts himself in restraint. (1)
जीवा चेव अजीवा य, एस लोए वियाहिए।
अजीवदेसमागासे, अलोए से वियाहिए॥२॥ जीव और अजीव जहाँ हैं, वह लोक कहा गया है। और अजीव का एक देश (विभाग या अंश) जो (मात्र) आकाश है, वह अलोक (अलोकाकाश) है॥२॥
The place where soul and non-soul exist is called universe (Lok). Empty space, which is a part of the non-soul, is called unoccupied space (Alok or Alokakash). (2)
दव्वओ खेत्तओ चेव, कालओ भावओ तहा।
परूवणा तेसिं भवे, जीवाणमजीवाण य॥३॥ उन जीवों और अजीवों की प्ररूपणा-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से की जाती है॥३॥
Soul (life) and non-soul (matter) are being described with reference to substance, place, time and modes or developments. (3) अजीव-प्ररूपणा
रूविणो चेवऽरूवी य, अजीवा दुविहा भवे।
अरूवी दसहा वुत्ता, रूविणो वि चउव्विहा ॥४॥ अजीव दो प्रकार का होता है-(१) रूपी, और (२) अरूपी। अरूपी (अजीव) दस प्रकार का है और रूपी (अजीव) के चार भेद हैं॥ ४॥ Non-life
Non-life is of two kinds-(1) with form (rupi), and (2) without form (arupi). Nonlife without form is of ten kinds and that with form is of four types. (4) अरूपी-अजीव-प्ररूपणा
धम्मत्थिकाए तसे, तप्पएसे य आहिए। अहम्मे तस्स देसे य, तप्पएसे य आहिए॥५॥