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[483 ] चतुस्त्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
The colour of white (Shukla) soul-complexion is white like-conch-shell, Anka gem (rock-crystal-like gem), Kund flower (Bela; Mogara; Jasminum pubescens), stream of milk and silver necklace. (9)
(३) रसद्वार
जह कडुयतुम्बगरसो, निम्बरसो कडुयरोहिणिरसो वा । तो वि अणन्तगुणो, रसो उ किण्हाए नायव्वो ॥ १० ॥
जिस प्रकार कड़वे तुम्बे का रस, नीम का रस, कड़वी रोहिणी (नीम गिलोय) का रस जितना कड़वा होता है, उससे भी अनन्तगुणा अधिक कड़वा रस (स्वाद) कृष्णलेश्या का जानना चाहिये ॥ १० ॥ ( 3 ) Rasa dvara (taste) -
The taste of black soul-complexion (Krishna leshya) is infinitely more bitter than that of bitter gourd (Tumbak) juice, margossa juice and bitter Rohini (a creeper popularly known as Neem Giloya, Mallotus philippensis). (10)
जह तिगडुयस्स य रसो, तिक्खो जह हत्थिपिप्पलीए । तो व अणन्तगुणो, रसो उ नीलाए नायव्वो ॥ ११ ॥
जैसा त्रिकटुक ( त्रिकुटा - सोंठ, पिप्पल, कालीमिर्च ) का रस, गज पीपल का रस जितना तीखा (चरपरा) होता है उससे भी अनन्तगुणा तीखा रस (स्वाद) नीललेश्या का जानो ॥ ११ ॥
The taste of blue soul-complexion (Neel leshya) is infinitely more pungent than that of Trikatuk (mixture of black pepper, long pepper and dry ginger) and Hastipippal (Scindapsus officinalis ). ( 11 )
जह तरुण अम्बगरसो, तुवरकविट्ठस्स वावि जारिसओ । एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उ काऊए नायव्वो ॥ १२ ॥
. जैसे कच्चे आम का रस, कच्चे कपित्थ फल (कवीठ) का रस जितना कषैला होता है, उससे भी अनन्तगुणा कषैला रस (स्वाद) कापोतलेश्या का जानना चाहिये ॥ १२॥
The taste of pigeon-blue (Kaapot) soul-complexion is infinitely more astringent than juice of unripe mango and unripe fruit of Kapittha (kaith; wood-apple; Feronia limonia). (12)
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जह परिणयम्बगरसो, पक्ककविट्ठस्स वावि जारिसओ । एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उ तेऊए नायव्वो ॥ १३ ॥
जैसे पके हुए आम का रस, पके हुए कपित्थ का रस जितना खट्टा-मीठा होता है उससे भी अनन्तगुणा खट्टा-मीठा रस तेजोलेश्या का जानो ॥ १३ ॥
The taste of fiery-red (Tejas) soul-complexion is infinitely more sour and sweet than the juice of ripe mango and Kapittha fruit. (13)
वरवारुणीए व रसो, विविहाण व आसवाण जारिसओ । महु- मेरगस्स व रसो, एत्तो पम्हाए परएणं ॥ १४ ॥