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तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
द्वितीय अध्ययन [20]
Satkaar-puraskaar-parishaha (affliction related to honour and prize), (20)Prajna-parishaha (enlightenment related affliction), (21) Jnana-parishaha (knowledge related affliction or ignorance), (22) Darshan-parishaha (conduct related affliction).
परीसहाणं पविभत्ती, कासवेणं पवेइया।
तं मे उदाहरिस्सामि, आणुपुव्विं सुणेह मे॥१॥ काश्यप गोत्रीय श्रमण भगवान महावीर ने परीषहों के जो विभागशः भेद बताए हैं, वे मैं तुम्हें कहता हूँ। तुम क्रमशः मुझसे सुनो॥१॥
Now I tell you the classification of the afflictions as told by Kashyap Gotriya Shraman Bhagavan Mahavir in proper order. Listen to me. (1) १. क्षुधा परीषह
दिगिंछा-परिगए देहे, तवस्सी भिक्खु थामवं। न छिन्दे, न छिन्दावए, न पए न पयावए॥२॥ काली-पव्वंग-संकासे, किसे धमणि-संतए।
मायन्ने असण-पाणस्स, अदीण-मणसो चरे॥३॥ अत्यधिक क्षुधा की वेदना होने पर भी दृढ़ मनोबली तपस्वी न स्वयं फलों का छेदन (वृक्ष से फल तोड़ना) करे, न किसी अन्य से छेदन करावे और न स्वयं पकाये, न किसी अन्य से पकवाये ॥२॥ ___ दीर्घकाल की क्षुधा के कारण कौए की जाँघ के समान शरीर अत्यन्त दुर्बल (दुबला) और कृश हो जाए, धमनियाँ (शरीर का नसा-जाल) साफ दिखाई देने लगे, फिर भी अशन-पान (आहार-पानी) की मर्यादा को जानने वाला साधु दीनभाव से रहित होकर संयम यात्रा में विचरण करे॥३॥ 1. Kshudha-parishaha (Affliction of hunger)
In spite of the agony of hunger an ascetic with strong will power should neither pluck fruits from tree himself nor get them plucked by others; neither should he cook them himself nor get them cooked by others. (2)
Due to prolonged hunger even if the body gets extremely weak and lean having prominent and visible veins, like limbs of a crow, an ascetic, aware of the limits of food and water, should continue practicing his ascetic-discipline (samyam) without a feeling of dismay. (3) २. पिपासा (तृषा) परीषह
तओ पुट्ठो पिवासाए, दोगुंछी लज्ज-संजए। सीओदगं न सेविज्जा, वियडस्सेसणं चरे॥४॥ छिन्नावाएसु पन्थेसु, आउरे सुपिवासिए।
परिसुक्क-मुहेग्दीणे, तं तितिक्खे परीसहं॥५॥ असंयम से दूर रहने वाला लज्जालु संयमी भिक्षु प्यास से अत्यन्त पीड़ित होता हुआ भी शीतल जल (सचित्त जल) का सेवन न करे; अपितु अचित्त-प्रासुक जल की गवेषणा करे॥४॥