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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
द्वात्रिंश अध्ययन [464]
After that he sees and knows all the constituents (and modes) of the universe. Getting free of deluding and power hindering karmas, he blocks the inflow of karmas. Then being endowed with spiritual serenity he attains absolute purity and liberation at the end of his life-span. (109)
सो तस्स सव्वस्स दुहस्स मुक्को, जं बाहई सययं जन्तुमेयं ।
दीहामयविप्पमुक्को पसत्थो, तो होइ अच्चन्तसुही कयत्थो॥११०॥ वह उन सभी दुःखों से मुक्त हो जाता है जो इस जीव को सतत बाधित (पीड़ित) करते रहते हैं। दीर्घकालिक (जन्म-मरण, कर्म) रोगों से विमुक्त, प्रशस्त, कृतार्थ एवं अत्यन्त सुखी हो जाता है॥ ११०॥
He becomes free from all miseries that always plague this soul. He gets emancipated from all chronic ailments (birth-death, karma), grand, accomplished and contentedly blissful. (110)
अणाइकालप्पभवस्स एसो, सव्वस्स दुक्खस्स पमोक्खमग्गो। वियाहिओ जं समुविच्च सत्ता, कमेण अच्चन्तसुही भवन्ति ॥१११॥
.-त्ति बेमि। अनादिकाल से उत्पन्न होते आये, समस्त दु:खों से मुक्ति का यह मार्ग कहा गया है, जिसे सम्यक् प्रकार से अपनाकर जीव क्रम से अत्यन्त सुखी (अनन्त सुख-सम्पन्न) हो जाते हैं ॥ १११॥
-ऐसा मैं कहता हूँ।
This is said to be the path of liberation from all miseries sprouting since time immemorial, rightly taking which souls, in due course, attain ultimate and eternal bliss. (111)
- So I say.