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________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र ४३. वेयावच्चे ४४. सव्वगुणसंपण्णया ४५. वीयरागया ४६. खन्ती ४७. मुत्ती ४८. अज्जवे ४९. मद्दवे ५०. भावसच्चे ५१. करणसच्चे ५२. जोगसच्चे ५३. मणगुत्तया ५४. वयगुत्तया ५५. कायगुत्तया ५६. मणसमाधारणया ५७. वयसमाधारणया ५८. कायसमाधारणया एकोनत्रिंश अध्ययन [ 368 ] १. संवेग २. निर्वेद ३. धर्मश्रद्धा ४. गुरु तथा साधर्मिक की शुश्रूषा ५. आलोचना ६. निन्दा ( निन्दना) ७. गर्दा (गर्हणा) ८. सामायिक ९. चतुर्विंशति स्तव ५९. नाणसंपन्नया ६०. दंसणसंपन्नया ६१. चरित्तसंपन्नया ६२. सोइन्दियनिग्गहे ६३. चक्खिन्दियनिग्गहे ६४. घाणिन्दियनिग्गहे ६५. जिब्भिन्दियनिग्ग ६६. फासिन्दियनिग्गहे ६७. कोहविज ६८. माणविज ६९. मायाविज ७०. लोहविज ७१. पेज्जदोसमिच्छादंसणविजए ७२. सेलेसी ७३. अकम्मया सूत्र १ - हे आयुष्यन् ! मैंने सुना है, उन भगवान ने इस प्रकार कहा है इसी जिन प्रवचन में काश्यप गोत्रीय श्रमण भगवान महावीर ने सम्यक्त्व पराक्रम नामक अध्ययन का प्रतिपादन किया है, जिसका सम्यक् श्रद्धान् करके, प्रतीति करके, रुचि करके, स्पर्श. करके, पालन करके, पार करके, कीर्तन करके, शुद्ध करके, आराधना करके, गुरु- आज्ञा के अनुसार अनुपालन करके बहुत से जीव सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिर्वाण को प्राप्त होते हैं और सम्पूर्ण दुःखों का अन्त करते हैं। उसका यह अर्थ है जो इस प्रकार कहा जाता है। जैसे कि १०. वन्दना ११. प्रतिक्रमण १२. कायोत्सर्ग १३. प्रत्याख्यान १४. स्तव - स्तुति मंगल १५. काल प्रतिलेखना १६. प्रायश्चित्त १७. क्षामणा - क्षमापना १८. स्वाध्याय
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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