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________________ [365 ] एकोनत्रिंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र उन्तीसवाँ अध्ययन : सम्यक्त्व पराक्रम पूर्वालोक प्रस्तुत अध्ययन का नाम सम्यक्त्व पराक्रम है। इस अध्ययन द्वारा सम्यक्त्व में पराक्रम करने के लिए एक दिशा प्राप्त होती है। कुछ आचार्यों ने इस अध्ययन का नाम 'अप्रमादश्रुत' दिया है तो कुछ ने 'वीतरागश्रुत'। लेकिन प्रस्तुत अध्ययन की विषय-वस्तु पर गंभीर विचार करने से 'सम्यक्त्व पराक्रम' नाम ही अधिक उचित प्रतीत होता है। पिछले मोक्ष-मार्ग-गति अध्ययन में मोक्ष-प्राप्ति के चार साधन बताये गये थे। उनमें से एक दर्शन-सम्यग्दर्शन अथवा सम्यक्त्व भी था तथा इसमें पराक्रम करने की प्रेरणा भी दी गई थी। प्रस्तुत अध्ययन 'सम्यक्त्व पराक्रम' में एक दिशा-निर्देश किया गया है कि सम्यक्त्व में पराक्रम किस प्रकार किया जाय। साधक के मन-मस्तिष्क में ये प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं कि संवेग, निर्वेद, श्रद्धा (धर्म-श्रद्धा), शुश्रूषा-सेवा, वैयावृत्य, आलोचना, निन्दा, गर्दा तथा अन्य ऐसी विभिन्न प्रकार की प्रवृत्तियाँ जो साधक जीवन में की जाती हैं-करने का निर्देश गुरुजनों द्वारा दिया जाता है, उन क्रियाओं का कुछ फल होता भी है या नहीं? और यदि होता है तो क्या और किस रूप में होता है? साधक की आत्मा को क्या लाभ होता है-क्या विशिष्ट उपलब्धि होती है इनसे? ___इस अध्ययन में ऐसे ही ७३ प्रश्न संकलित हैं और उनके समाधान दिये गये हैं। __ प्रश्न छोटे-छोटे हैं और उत्तर भी संक्षिप्त हैं; किन्तु संक्षिप्त उत्तरों में गहरा रहस्य भरा है। हम पहले ही प्रश्न संवेग को लें। इसके उत्तर में धर्म-श्रद्धा से लेकर तीसरे जन्म में मोक्ष-प्राप्ति तक का फल बताया गया है। इसी प्रकार अन्य प्रश्नों के उत्तर भी हैं। छोटे प्रश्नों के समाधान में भी परिपूर्णता दृष्टिगोचर होती है। प्रश्न और उनके उत्तरों का क्रम सर्वथा व्यवस्थित है। प्रश्नों का प्रारम्भ संवेग-मोक्षाभिलाषा से होता है। यानी प्रथम प्रश्न में मोक्ष की अभिलाषा है और अन्तिम प्रश्न में अकर्मता सिद्धि (मुक्ति) की प्ररूपणा है। साधक जीवन का प्रारम्भ भी मोक्षाभिरुचि-मोक्षाभिलाषा से होता है और उसका चरम लक्ष्य सिद्धि ही है। ___ यह अध्ययन प्रश्नोत्तर शैली में रचित है। संपूर्ण उत्तराध्ययनसूत्र में जितने विषयों का वर्णन हुआ है, उन सब से सम्बन्धित प्रश्नों का इस अध्ययन में समाधान प्रस्तुत हुआ है। इसी कारण इस अध्ययन को सम्पूर्ण उत्तराध्ययनसूत्र का हार्द कहा गया है। सूक्ष्म दृष्टि से विचार करने पर साधक की समस्त आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान प्रस्तुत अध्ययन में सम्प्राप्त है। प्रस्तुत अध्ययन में ७३ प्रश्न और उनके समाधान तथा ७४ सूत्र हैं।
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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