SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 406
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र द्वाविंश अध्ययन [ 270] निवास की ओर मोड़ने का आदेश दिया। इस अप्रत्याशित घटना से राजीमती शोक-विह्वल होकर मूर्च्छित हो गई। अरिष्टनेमि ने श्रावण शुक्ला पंचमी के शुभ दिन में दीक्षा ग्रहण कर ली है - इस समाचार से राजीमती का दिल टूट गया। वह शोकमग्न हो गई। उसने अरिष्टनेमि के पथ पर चलने का दृढ़ निश्चय कर लिया । रथनेमि ने उसके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा तो उसने स्वयं को अरिष्टनेमि द्वारा त्यक्त बताकर रथनेमि को विरक्त कर दिया । निराश होकर रथनेमि ने प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। भगवान अरिष्टनेमि को केवलज्ञान प्राप्त होने के अनन्तर राजीमती भी अनेक स्त्रियों के साथ प्रव्रजित हो गई। एक बार अरिष्टनेमि रैवतक पर्वत पर विराजमान थे । राजीमती अन्य साध्वियों के साथ प्रभु-दर्शन की उत्कट कामना लिए जा रही थी। मार्ग में भयंकर आँधी-तूफान के साथ मूसलाधार वर्षा होने लगी। सभी साध्वियाँ तितर-बितर हो गईं। काले-कजराले बादलों के कारण दिन में भी अन्धकार छा गया। राजीमती पूरी तरह भीग गई थी । आश्रय की खोज करते-करते उसे एक गुफा दिखाई दे गई। वह उसमें जा पहुँची । यद्यपि वहाँ साधु रथनेमि ध्यानस्थ खड़े थे किन्तु गहन अन्धकार के कारण वे उसे दिखाई न दिये। निपट एकान्त जानकर उसने अपने सभी गीले वस्त्र उतारकर निचोड़े और सूखने के लिए फैला दिये। तभी कड़क के साथ बिजली चमकी तथा गुफा में प्रकाश हो गया। कड़क की आबाज के कारण रथनेमि का ध्यान टूट गया। उस क्षणिक् प्रकाश में रथनेमि और राजीमती ने परस्पर एक-दूसरे को देख लिया । वस्त्ररहित राजीमती को देखकर साधु रथनेमि का चित्त चंचल हो गया । राजीमती ने अपनी बाहों से अपना वक्षस्थल ढक लिया और अंग संकुचित करके बैठ गई । चंचल चित्त रथनेमि ने राजीमती से भोग - याचना की और कहा - आयु ढलने पर हम प्रव्रजित होकर संयम साधना कर लेंगे। लेकिन राजीमती ने कुल गौरव आदि का स्मरण कराया और विषयों के कटुफल बताए । मोहग्रस्त रथनेमि को ऐसी ओजस्वी फटकार लगाई कि रथनेमि का चित्त उसी प्रकार शांत हो गया जैसे अंकुश से मत्त गजराज शांत हो जाता है। संयम साधना करके रथनेमि और राजीमती - दोनों ने मुक्ति प्राप्त की । प्रस्तुत अध्ययन का केन्द्र - बिन्दु यही राजीमती का उद्बोधन है, जो अत्यधिक तेजस्वी वाणी में दिया गया है। इसकी यह विशेषता भी है कि इसमें नारी की तेजस्विता और दृढ़धर्मिता का पक्ष उजागर किया गया है। यह उद्बोधन इतना महत्वपूर्ण है कि इसे दशवैकालिकसूत्र, अध्ययन २ में भी संकलित किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन में ५१ गाथाएँ हैं ।
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy