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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
विंशति अध्ययन [ 248 ]
विंसइमं अज्झयणं : महानियण्ठिज्जं विंशति अध्ययन : महानिर्ग्रन्थीय
Chapter-20: ABOUT GREAT ASCETIC
सिद्धाणं नमो किच्चा, संजयाणं च भावओ । अत्थधम्मगइं तच्चं, अणुसठि सुह मे ॥ १ ॥
सिद्धों तथा संयतों (आचार्य, उपाध्याय, साधु) को भाव सहित नमस्कार करके मैं अर्थ - (मोक्ष) और धर्म (रत्नत्रयरूप धर्म) का ज्ञान कराने वाली तथ्यपूर्ण शिक्षा का कथन करता हूँ, उसे मुझसे सुनो ॥ १॥
Paying homage to the perfected (liberated) ones and restrained ones (ascetics of all levels including acharyas, upadhyayas and sadhus) I convey authentic teachings, which are capable of imparting knowledge of essence (goal of liberation) and religion (based on the three gems of right knowledge, perception / faith and conduct); hear that from me. (1)
पभूयरयणो राया, सेणिओ मगहाहिवो । विहारजत्तं निज्जाओ, मण्डिकुच्छिसि चेइए ॥ २ ॥
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प्रचुर रत्नों का स्वामी, मगध देश का अधिपति राजा श्रेणिक मण्डिकुक्षि उद्यान में उद्यान -क्रीड़ा के लिए नगर से निकला ॥ २॥
The owner of abundant jewels, king Shrenik, the emperor of Magadh, came out of. the city to go for amusement to Mandikukshi garden. (2)
नाणादुमलयाइणं, नाणापक्खिनिसेवियं । नाणाकुसुमसंछन्नं, उज्जाणं नन्दणोवमं ॥ ३॥
वह उद्यान नंदनवन के समान अनेक प्रकार के वृक्षों, लताओं से आच्छादित, विविध प्रकार के पक्षियों से आकीर्ण और विभिन्न प्रकार के पुष्पों से भरा हुआ था ॥ ३ ॥
Like Nandanavan (divine garden) that garden was filled with several kinds of trees, covered with creepers, crowded with a variety of birds and enriched by miscellany of flowers. (3)
तत्थ सो पासई साहुं, संजयं सुसमाहियं । निसन्नं रुक्खमूलम्मि, सुकुमालं सुहोइयं ॥ ४ ॥
उस उद्यान में राजा श्रेणिक ने एक वृक्ष के मूल में एक सुख भोग के आयुष्य वाले, सुकुमार, सम्यक् समाधियुक्त संयत को ध्यानस्थ बैठे देखा ॥ ४ ॥
In that garden under a tree king Shrenik saw a tender looking ascetic of merry-making age (youthful) sitting with serenity and restraint deeply engrossed in meditation. (4)