________________
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
सप्तदश अध्ययन [ 200]
सतरसमं अज्झयणं : पावसमणिज्जं सप्तदश अध्ययन : पापश्रमणीय Chapter-17: SINFUL ASCETIC
जे के इमे पव्वइए नियण्ठे, धम्मं सुणित्ता विणओववन्ने । सुदुलहं हि बोहिलाभं, विहरेज्ज पच्छा य जहासुहं तु ॥ १ ॥
जो कोई श्रुत-चारित्ररूप धर्म को सुनकर, अत्यधिक दुर्लभ बोधिलाभ प्राप्त करके पहले तो विनय से युक्त होकर निर्ग्रन्थ धर्म में प्रव्रजित हो जाता है और बाद में सुखशील बनकर स्वच्छन्द विचरण करता है ॥ १॥
One who hearing the religion of knowledge and conduct, and attaining rare-to-get enlightenment, first gets initiated into the ascetic order with all modesty but later becomes comfort-loving and moves about waywardly. (1)
सेज्जा दढा पाउरणं मे अत्थि, उप्पज्जई भोत्तुं तहेव पाउं ।
मिट्ट आसु ! त्ति, किं नाम कहामि सुएण भन्ते ? ॥ २ ॥
आचार्य अथवा गुरुजन जब उसको श्रुत के अध्ययन की प्रेरणा देते हैं तब वह कहता है-है आयुष्मन् ! निवास के लिये सुन्दर उपाश्रय, शरीर रक्षा के लिये वस्त्र मेरे पास हैं, खाने-पीने को भी यथेच्छ भोजन प्राप्त हो जाता है और जो हो रहा है उसे मैं जानता हूँ। तब शास्त्रों का अध्ययन करके मैं क्या करूँगा ? ॥ २ ॥
When his acharya (preceptor) and senior ascetics advise him to study scriptures, then he says—O long lived one! I have good lodging, clothes to protect my body, desired food to eat and I know what goes on. Then what is the use of studying scriptures for me ? (2)
जे के इमे पव्वइए, निद्दासीले पगामसो ।
भोच्चा पेच्चा सुहं सुवइ, पावसमणे त्ति वुच्चई ॥ ३ ॥
जो कोई प्रव्रज्या ग्रहण करके अत्यधिक निद्रा लेता है, इच्छानुकूल खा-पीकर (दिन में भी) सो जाता है, वह पापश्रमण कहा जाता है ॥ ३ ॥
After getting initiated, one who sleeps much, sleeps even after will-fully drinking and eating (even during day time ), is called a sinful ascetic. (3)
आयरियउवज्झाएहिं, सुयं विणयं च गाहिए ।
ते चेव खिंसई बाले, पावसमणे त्ति वुच्चई ॥ ४ ॥
जिन आचार्यों और उपाध्यायों से श्रुत ज्ञान और विनय - आचार की शिक्षा प्राप्त की है, उन्हीं गुरुजनों की जो निन्दा करता है, वह पापश्रमण कहा जाता है ॥ ४ ॥