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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
Beholding virtuous sages, the two sons of priest Bhrigu got disturbed by fear of birth, dotage and death. Their thoughts were drawn to dwell away (towards liberation) and as a result they got disenchanted from sensual pleasures in order to be liberated from the cycles of rebirth. (4)
चतुर्दश अध्ययन [ 162 ]
पियपुत्तगा दोन्नि वि माहणस्स, सकम्मसीलस्स पुरोहियस्स । सरित्तु पोराणिय तत्थ जाई, तहा सुचिण्णं तव-संजमं च ॥५॥
यज्ञ-याग आदि अपने कर्म में निरत भृगु पुरोहित के उन दोनों प्रिय पुत्रों को अपने पिछले जन्म तथा उसमें सुआचरित तप-संयम का स्मरण हो आया ॥ ५ ॥
Indulging in their activities of yajna (sacrifices), both the sons of priest Bhrigu remembered their earlier birth as well as the then performed immaculate austerities and self-control. (5)
ते कामभोगेसु असज्जमाणा, माणुस्सएसुं जे यावि दिव्वा । मोक्खाभिकखी अभिजायसड्ढा, तायं उवागम्म इमं उदाहु - ॥ ६ ॥
मानुषिक तथा दिव्य कामभोगों में अनासक्त, एक मात्र मोक्ष - प्राप्ति के इच्छुक, श्रद्धा संपन्न दोनों . पुरोहित - पुत्र पिता के पास आकर कहने लगे - ॥ ६ ॥
Not obsessed with human and divine pleasures, desirous to attain emancipation alone and full of faith, the priest-sons came to their father and said - (6)
असासयं दट्टु इमं विहारं बहुअन्तरायं न य दीहमाउं । तम्हा गिर्हसि न रई लहामो, आमन्तयामो चरिस्सामु मोणं ॥ ७ ॥
(पुत्र-) यह मनुष्य-जन्म अनित्य है, इसमें बहुत-सी बाधाएँ हैं, आयु भी दीर्घ नहीं है; इस कारण घर में हमें कोई रुचि नहीं है । मुनिधर्म - पालन हेतु आपकी अनुमति चाहते हैं ॥ ७ ॥
(Sons-) This human life is transient, it is riddled with many hindrances and its span is also not long; therefore we have no interest in domestic life. We seek your consent for practicing the ascetic code. (7)
अह तायो तत्थ मुणीण तेसिं, तवस्स वाघायकरं वयासी । इमं वयं वेयविओ वयन्ति, जहा न होई असुयाण लोगो ॥८ ॥
(पुरोहित - ) पुत्रों के यह वचन सुनकर पिता ने उनको रोकने का प्रयास किया। कहा - पुत्रो ! वेद के ज्ञाताओं का यह कथन है कि पुत्रहीन को सद्गति प्राप्त नहीं होती ॥ ८ ॥
Having heard these words of his sons, the father (priest Bhrigu) tried to stop them. He said-Dear sons! The scholars of Vedas say that a man without a son is deprived of noble future (next birth ). ( 8 )
अहिज्ज वेए परिविस्स विप्पे, पुत्ते पडिट्ठप्प गिहंसि जाया !
भोच्चाण भए सह इत्थियाहिं, आरण्णगा होह मुणी पसत्था ॥ ९ ॥
अतः पहले वेदों का अध्ययन करो, विप्रों को भोजन दो, विवाह करके स्त्रियों के साथ भोग भोगो। तत्पश्चात् पुत्रों को घर का भार देकर अरण्यवासी श्रेष्ठ मुनि बन जाना ॥ ९ ॥