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________________ Sksssssssssssssssssssssssss! स्वकथ्य जैन आगम साहित्य चार भागों में विभक्त है-(१) अंग, (२) उपांग, (३) मूल, और (४) छेद। उत्तराध्ययनसूत्र “चार मूलसूत्र" में गिना जाता है। कल्पसूत्र (१४६वीं वाचना) के अनुसार यह माना जाता है कि भगवान ने अपने निर्वाण से ॐ पूर्व अन्तिम समय में पावापुरी की धर्मसभा में इस आगम का प्रवचन किया था। इस सूत्र की अन्तिम गाथा (३६/२६८) में भी यही भाव स्पष्ट हुआ है कि भगवान महावीर उत्तराध्ययन का कथन करते-करते परिनिर्वाण को प्राप्त हुए। इस दृष्टि से यह सूत्र “जिनभाषित" है और "जिनभाषित" सूत्र, अंगशास्त्र में गिना जाना चाहिये, परन्तु उत्तराध्ययन की गणना अंग बाह्य “मूलसूत्र" में की जाती है। इससे लगता है कि भगवान महावीर की इस पवित्र अन्तिम देशना में बहुश्रुत स्थविरों का भी योगदान सम्मिलित है। कई विद्वान् ऐसा मानते हैं कि उत्तराध्ययनसूत्र के प्रथम १८ अध्ययन प्राचीन हैं और पश्चाद्वर्ती १८ अध्ययन उत्तरकाल की संकल्पना हैं। परन्तु इस मान्यता के पीछे भी कोई पुष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है। विषय प्रतिपादन, शैली तथा भाषा आदि दृष्टियों से इसकी समीक्षा करने पर अनेक मतभेद भी दृष्टिगोचर होते हैं। बहुत संभव है, इस सूत्र के कुछ * अध्ययनों का संकलन पश्चाद्वर्ती स्थविरों तथा आचार्यों ने किया हो, परन्तु इससे उत्तराध्ययनसूत्र के महत्व में कोई अन्तर नहीं पड़ता, क्योंकि इस आगम की प्रतिपादन शैली और प्रतिपाद्य विषय जीवन के सर्वतोमुखी विकास और आध्यात्मिक उन्नयन में अतीव सहायक हैं। उत्तराध्ययनसूत्र-व्यावहारिक तथा आध्यात्मिक जीवन के सम्बन्ध में भगवान महावीर के विचारों का एक निचोड़ है, नवनीत है। भगवान महावीर के एक हजार वर्ष बाद देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण ने उत्तराध्ययनसूत्र का जो रूप/स्वरूप स्थिर कर दिया था वह आज भी ३६ अध्ययनों के रूप में हमारे पास सुरक्षित है और वह हमारी महत्वपूर्ण धरोहर है। भू उत्तराध्ययनसूत्र के महत्व के विषय पर चर्चा करना सूर्य की महिमा का बखान करने जैसा है। जबकि वही सम्पूर्ण लोक का जीवन है। उत्तराध्ययन अध्यात्म-लोक का सूर्य है। यदि इसका * प्रकाश जीवन के आँगन में नहीं चमकेगा तो जीवन शून्य हो जायेगा। उत्तराध्ययनसूत्र का प्रथम अध्ययन विनय, दूसरा परीषह प्रविभक्ति तथा तृतीय-चतुर्थ में अध्ययन मनुष्य के व्यावहारिक जीवन को अनुशासित, संयमित, सहिष्णु और प्रतिक्षण से जागरूक रहने की प्रेरणा देते हैं। इन अध्ययनों में वास्तव में मनुष्य मात्र को जीने की * कला सिखाई गई है। clessleeplesslesslesalesalesslesslesalescookekolksokesickoolcoskakakakesikskosleeplesslessleeplessleeplesslesaleelcasilsx (5) KATERTA p papayaprapayappageprepage
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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