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५. [३] एवं असंखेज्जवित्थडेसु वि, नवरं तिसु वि गमएसु असंखेज्जा भाणियव्वा जाव असंखेज्जा अचरिमा पन्नत्ता।
५. [३] इसी प्रकार असंख्यात योजन विस्तार वाले असुरकुमारावासों के विषय में भी 5 कहना चाहिए। केवल विशेषता इतनी ही है कि पूर्वोक्त तीनों आलापकों (गमकों) में (संख्यात है के स्थान पर) 'असंख्यात' कहना चाहिए। और यावत् – 'असंख्यात अचरम कहे गए हैं', यहाँ , तक कहना चाहिए।
5-3. The same is also true for divine abodes of Asur-kumar Devs with $ unlimited expanse (innumerable Yojan area). The only difference is that in 5 the three aforesaid statements limited should be replaced by unlimited ...
and so on up to ... there are said to be innumerable acharam beings (thosė who are not in their last birth or the last moment of that particular birth).
६. [प्र.] केवइया णं भंते ! नागकुमारवास. ?
[उ.] एवं जाव थणियकुमारा, नवरं जत्थ जत्तिया भवणा। ... ६. [प्र.] भगवन्! नागकुमार (आदि भवनवासी) देवों के कितने लाख आवास कहे गए
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[उ.] (गौतम!) पूर्वोक्त रूप से (नागकुमार से लेकर) यावत् स्तनितकुमार तक (उसी प्रकार) कहना चाहिए। केवल विशेषता इतनी ही है कि जहाँ जितने लाख भवन हों, वहाँ उतने के लाख भवन कहने चाहिए।
6. [Q.) Bhante ! How many abodes of Naag-kumar devs (and other abode 5 dwelling gods) are said to be there ? (and other questions)
[Ans.] (Gautam !) As aforesaid (from Naag-kumar devs) ... and so on 41 up to ... Stanit-kumar devs; only mention the respective number of abodes _in due order.
विवेचन-प्रस्तुत सूत्रों (सू. ५ व ६ में) भवनवासी देवों के आवास एवं उनके विस्तार आदि ॐ की प्ररूपणा की गई है। भवनवासी देवों के अन्तर्गत असुरकुमारों के ६४ लाख, नागकुमारों के ८४ ॥
लाख, सुपर्णकुमारों के ७२ लाख, वायुकुमारों के ९६ लाख तथा द्वीपकुमार, दिशाकुमार, उदधिकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार और स्तनितकुमार, इन प्रत्येक युगल के ७६-७६ लाख भवन होते हैं।
भवनवासी देवों के आवास (भवन) संख्यात योजन विस्तार वाले और असंख्यात योजन विस्तार वाले होते हैं। उनके तीन प्रकार के आवासों का परिमाण निम्न गाथा के आधार पर कहा गया है
| भगवती सूत्र (४)
(486)
Bhagavati Sutra (4)