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भवनपति देवों के भेद, असुरकुमार देवों के आवास और उनके विस्तार की प्ररूपणा CLASSES OF ABODE DWELLING GODS, THEIR ABODES AND EXPANSE
२. [ प्र. ] भवणवासी णं भंते! देवा कइविहा पन्नत्ता ?
[उ. ] गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता, तं जहा - असुरकुमारा. एवं भेओ जहा बिइम्सए देवुद्देसए (स. २ उ. ७) जाव अपराजिया सव्वट्ठसिद्धगा ।
२. [प्र.] भगवन्! भवनवासी देव कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
[उ.] गौतम! (भवनवासी देव) दस प्रकार के कहे गए हैं। यथा - असुरकुमार स्तनितकुमार। इस प्रकार भवनवासी आदि देवों के भेदों का वर्णन द्वितीय शतक के उद्देशक़ (श. २, उ. ७) के अनुसार यावत् अपराजित एवं सर्वार्थसिद्ध तक जानना चाहिए।
2. [Q.] Bhante ! How many classes of Bhavan-vaasi devs (Abodedwelling gods) are said to be there?
यावत्
[Ans.] Gautam! They are said to be of ten classes-Asur-kumar... and so on up to... Stanit-kumar. Refer to seventh lesson of the second chapter for description of all classes of divine beings including Abode-dwelling gods... and so on up to... Aparaajit and Sarvarth-siddha (vimaans).
३. [ प्र. ] केवइया णं भंते ! असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता ?
[उ. ] गोयमा ! चोसट्ठि असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता ।
३. [प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देवों के कितने लाख आवास कहे गए हैं ? [उ.] गौतम! असुरकुमार देवों के चौसठ लाख आवास कहे गए हैं।
सप्तम
3. [Q.] Bhante ! How many abodes of Asur kumar devs are said to be there?
४. [ प्र. ] ते णं भंते! किं संखेज्जवित्थडा असंखेज्जवित्थडा ?
गोयमा ! संखेज्जवित्थडा वि असंखेज्जवित्थडा वि ।
[Ans.] Gautam ! There are said to be sixty four Lac (6.4 million) abodes of Asur-kumar devs.
[उ.]
तेरहवाँ शतक: द्वितीय उद्देशक
४. [प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देवों के क्या वे आवास संख्यात योजन विस्तार वाले हैं अथवा असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं ?
(483) Thirteenth Shatak: Second Lesson
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