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________________ विवेचन-अनन्तरोपपन्नक और परम्परोपपन्नक-जिन नैरयिक जीवों को उत्पन्न हुए अभी के एक समय ही हुआ है, उन्हें 'अनन्तरोपपन्नक' और जिन्हें उत्पन्न हुए दो, तीन आदि 'समय' हो चुके म 卐 हैं, उन्हें परम्परोपपन्नक कहते हैं। अनन्तरावगाढ और परम्परावगाढ-किसी एक विवक्षित क्षेत्र में प्रथम समय में रहे हुए (अवगाहन करके स्थित) जीवों को अनन्तरावगाढ और विवक्षित क्षेत्र में द्वितीय आदि समय में रहे 卐 हुए जीवों को परम्परावगाढ कहते हैं। अनन्तराहारक और परम्पराहारक-आहार ग्रहण किये हुए जिन जीवों को प्रथम समय हुआ है, वे अनन्तराहारक और जिन्हें द्वितीय आदि समय हो गया है, उन्हें परम्पराहारक कहते हैं। अन्तरपर्याप्तक और परम्परपर्याप्तक-जिन जीवों को पर्याप्त हुए प्रथम समय ही हुआ है, वे है अनन्तरपर्याप्तक और जिन्हें पर्याप्त हुए द्वितीयादि समय हो चुका है, वे परम्परपर्याप्तक कहलाते हैं। चरम नैरयिक और अचरम नैरयिक-जिन- जीवों का नारक भव अन्तिम है, अथवा जो नारक भव के अन्तिम समय में वर्तमान हैं, वे चरम नैरयिक और इनसे विपरीत को अचरम नैरयिक कहते फ़ हैं। के जो असंज्ञी तिर्यञ्च अथवा मनुष्य मरकर नरक में नैरयिक जीव के रूप से उत्पन्न होते हैं, वे पर्याप्त-अवस्था में कुछ समय तक असंज्ञी होते हैं, फिर वे संज्ञी हो जाते हैं ऐसे नैरयिक जीव बहुत कम होते हैं। इसलिए यहाँ कहा गया है कि-रत्नप्रभा पृथ्वी में असंज्ञी कदाचित् होते हैं और कदाचित् ॥ नहीं भी होते हैं। इसी प्रकार मानकषायी, मायाकषायी, लोभकषायी, नो-इन्द्रिय (मन) के उपयोग वाले,5 अनन्तरोपपन्नक, अनन्तरावगाढ, अनन्तराहारक तथा अनन्तरपर्याप्तक नैरयिक कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते है। उपर्युक्त नैरयिक जीवों के अतिरिक्त शेष नैरयिक जीव सदा प्रभूत संख्या में रहते हैं, इसलिए उन्हें 'संख्यात' कहना चाहिए। Elaboration-Anantaropapannak and Paramparopapannak jivas-Anantaropapannak jivas are those who have been born just one Samaya before and Paramparopapannak jivas are those who have been born more than one Samaya before. Ananataraavagaadh and Paramparaavagaadh jivasAnanataraavagaadh jivas are those who have been born and are in the first Samaya of space occupation in that specific area. Paramparaavagaadh jivas are those who have been born and are in the second or any later Samaya of space occupation in that specific area. Anantaraahaarak and Paramparaahaarak jivasAnantaraahaarak jivas are those who have commenced intake just one तेरहवाँशतक: प्रथम उद्देशक (465) Thirteenth Shatak : First Lesson
SR No.002493
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages618
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size22 MB
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