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ज्ञानात्मा, दर्शनात्मा, चारित्रात्मा और वीर्यात्मा में उपयोगात्मा अवश्य ही रहती है, क्योंकि जीव का ॐ लक्षण ही उपयोग है। उपयोग लक्षण वाला जीव ही ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वीर्य का कारण होता है।' म उपयोग शून्य घटादि जड़ पदार्थ होते हैं, जिनमें ज्ञानादि नहीं पाये जाते।
ज्ञानात्मा के आगे की तीन आत्माओं का सम्बन्ध-जिस जीव में ज्ञानात्मा है, उसके दर्शनात्मा अवश्य ही होती है, क्योंकि सम्यग्ज्ञान रूपी ज्ञान सम्यग्दृष्टि जीवों के ही होता है और वह दर्शनपूर्वक ही होता है और जिस जीव के दर्शनात्मा है, उसके ज्ञानात्मा की भजना है, क्योंकि मिथ्यादृष्टि जीवों के दर्शनात्मा होते हुए भी ज्ञानात्मा नहीं होती।
जिस जीव के ज्ञानात्मा है, उसके चारित्रात्मा की भजना होती है क्योंकि अविरति-सम्यग्दृष्टि जीव के ज्ञानात्मा होते हुए भी चारित्रात्मा नहीं होती और जिस जीव के चारित्रात्मा है, उसके ज्ञानात्मा अवश्य ही में होती है। ज्ञान के बिना चारित्र का अभाव है।
जिस जीव में ज्ञानात्मा होती है, उसके वीर्यात्मा की भजना है, क्योंकि सिद्ध जीवों में ज्ञानात्मा के 5 होते हुए भी वीर्यात्मा नहीं होती और जिस जीव के वीर्यात्मा है, उसके ज्ञानात्मा की भजना है, क्योंकि म मिथ्यादृष्टि जीवों के वीर्यात्मा होते हुए भी ज्ञानात्मा नहीं होती।
दर्शनात्मा के साथ चारित्रात्मा और वीर्यात्मा का सम्बन्ध-जिस जीव के दर्शनात्मा होती है, उसके चारित्रात्मा और वीर्यात्मा की भजना है क्योंकि दर्शनात्मा के होते हुए भी असंयती जीवों के
चारित्रात्मा नहीं होती जबकि सिद्धों के दर्शनात्मा होते हुए भी वीर्यात्मा नहीं होती। सामान्यावबोध रूप प्रदर्शन तो सभी जीवों में होता है।
चारित्रात्मा और वीर्यात्मा का सम्बन्ध-जिस जीव के चारित्रात्मा होती है, उसके वीर्यात्मा अवश्य होती है क्योंकि वीर्य के बिना चारित्र का अभाव है, परन्तु जिस जीव में वीर्यात्मा होती है, उसमें चारित्रात्मा की भजना है, क्योंकि असंयत जीवों में वीर्यात्मा होते हुए भी चारित्रात्मा नहीं होती है।
Elaboration—These seven statements discuss the mutual association of aforesaid eight classes of souls.
Association of Dravya-atma (soul entity) with other seven classes-A jiva (living being) having Dravya-atma (soul entity) has Kashaaya-atma (passion-soul) when he is under influence of passions. However, when he is in the state of pacified or destroyed passions he does not have Kashaaya-atma. But, a jiva having Kashaaya-atma (passion-soul) certainly has Dravya-atma (soul entity) because in absence of Dravya-atma, or life itself, there is no scope for passions.
A jiva (living being) having Dravya-atma (soul entity) has Yoga-atma (associated-soul) when he is in the state of association (sayogi). However, when he is in the state of dissociation (ayogi), or has dissociated himself
| भगवती सूत्र (४)
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Bhagavati Sutra (4) 95555555555555555555555555555555598